शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

सत्यान्वेषण .......

           
    जगदीश्वर  देवी के साथ भ्रमण पर थे। तालाब किनारे एक धीर-गंभीर, सौम्य युवक पेड़ के नीचे बैठा जल में उठ रही तरंगों को देख रहा था। देवी की दृष्टि उस पर अटक गई, बोलीं-- ‘‘स्वामी, इस युवक को देखो ..... चिंतक सा लग रहा है ! इस आयु वाले आजकल माॅल में घूमते हैं, हुक्काबार में बैठते हैं, मदिरालय में अपना भविष्य और पिता का धन बरबाद करते हैं, टीवी-इंटरनेट से चिपके बैठे अपना समय नष्ट करते हैं। किन्तु जरा देखो नाथ ये यहां बैठा कुछ सोच-विचार कर रहा है !! इसे आपका आशीर्वाद मिलना चाहिए, .... प्रभु इसे समर्थ बनाइए, यह जो भी इच्छा करे, तथास्तु कहिए। ’’
                      ‘‘ रहने दो देवी, इसे मुझसे कुछ चाहिए होगा तो मंदिर में आ कर मांग लेगा। ’’  जगदीश्वर ने आनाकानी की।
                  ‘‘ ये जरूर आया होगा, किन्तु भीड़ के कारण आपने संज्ञान नहीं लिया होगा। चलिए ना , अभी आप फुरसत में भी हैं।’’ देवी ने हमेशा  की तरह जिद की।
                 विवश जगदीश्वर प्रकट हुए। मांगने को कहा तो युवक बोला -‘‘ मुझे अपूर्व ज्ञान दीजिए प्रभु, ऐसा ज्ञान जिससे मैं सत्यान्वेषण कर सकूं।’’
                ‘‘ तुम समृद्धि मांगो युवक, सुख-सुविधाएं मांगो, सांसारिक सफलता मांगो, आमोद-प्रमोद और आनंद मांगो .... पर यह मत मांगो ...। ’’ जगदीश्वर ने युवक के सामने विकल्प रखे।
               ‘‘ नहीं जगदीश्वर, मुझे ज्ञान-शक्ति  ही चाहिए। ’’ युवक नहीं माना।
              देवी ने जगदीश्वर से फुसफुसा कर कहा -‘‘ दे दो ना। ’’
              जगदीश्वर बोले - ‘‘जोखिम मत उठाओ देवी, .... मैं अपने प्रतिकूल आशीष  कैसे दे सकता हूं ! ’’


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सोमवार, 18 अगस्त 2014

उल्लू

                         
         रोज अंधेरा होते ही एक उल्लू  मंदिर के गुंबद पर बैठ जाता। परेशान  लोग अपशगुन मान कर उसे उड़ाते लेकिन वह हठी, उड़ जाता पर कुछ देर बाद वापस लौट आता। एक बार देर रात उसे मौका मिल गया। जगदीश्वर  खुली हवा में टहल रहे थे, वह उनके सामने आया, --‘‘ मेरी समस्या का समाधान कीजिए जगदीश्वर।’’
‘‘ पूछो लक्ष्मीवाहक, क्या बात है ?’’
‘‘ जगदीश्वर, मेरे पुरखे आस्ट्रेलिया  के थे इसलिए वे आस्ट्रेलियन  कहलाए। मेरे कुछ बंधु जर्मनी में हैं वे जर्मन कहलाते हैं। अमेरिका में रहने वाले मेरे भाई अमेरिकन हैं। तो में हिन्दुस्तान में रहने वाला हिन्दू क्यों नहीं हूं !?’’
जगदीश्वर मुस्कराए, बोले -‘‘ तुम हिन्दुस्तान में हो इसलिए बेशक हिन्दुस्तानी हो। लेकिन हिन्दू नहीं उल्लू हो। .....  हिन्दुस्तानी उल्लू ।’’ 
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मंगलवार, 1 जुलाई 2014

मदद !

     
              जन्मदिन पर भियाजी दलबल के साथ मंदिर पहुंचे, पूजन किया और हाथ जोड़ कर जगदीश्वर  से कहा कि - ‘‘ मैं नगर में एक अंधशाला खोलना चाहता हूं । आप मदद कीजिए । ’’
                     जगदीश्वर बोले - ‘‘ नगर में कोई अंधा तो है नहीं !! फिर क्यों .... ?! ’’
                    ‘‘ इसीलिए तो आपकी मदद चाहिए प्रभु । .... जनमदिन मनाने के लिए एक अंधशाला तो हर बड़े नेता के लिए जरूरी है । 
  

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बुधवार, 11 जून 2014

तुम्हारे लिए !

             
    कवि लंबे समय से तनाव और दुःख में चल रहा था। दिन-ब-दिन उसकी निराशा  बढ़ती जा रही थी। आखिर एक दिन उसे लगा कि ये संसार रहने काबिल नहीं है। शांति  और मुक्ति का एक मात्र मार्ग मृत्यु ही है। उसने आत्महत्या का निश्चय किया। बाजार से रस्सी ले कर लौट रहा था कि मंदिर दिख पड़ा। मन हुआ कि चलो आखरी बार जगदीश्वर  से रू-ब-रू हो लिया जाए।
            जगदीश्वर घूप-अगरबत्ती के घुंए में बैठे थे। नारियल के पानी से मिल कर बासी फूल-पत्तों से दुर्गन्ध आ रही थी। प्रसाद के मीठे से आसपास चीठा हो रहा था। धुंआए गर्भगृह में बल्ब की कुंद  रौशनी घुटन पैदा रही थी। कैसे जी रहे हैं जगदीश्वर !! कवि को लगा कि किसी तरह इन्हें भी मुक्ति का मार्ग पकड़ना चाहिए।
‘‘ कैसे आना हुआ कविराज ?’’ ध्यान गया तो जगदीश्वर ने पूछा।
‘‘ तंग आ गया हूं तुम्हारे इस संसार से। अब सहन नहीं होता मुझसे। मैंने तय कर लिया है कि अब आत्महत्या करूंगा। ’’ कवि ने नई खरीदी रस्सी दिखाते हुए कहा।
‘‘ ठीक है, कर लो। ..... मरने के बाद मैं तुम्हें अपने पास बुला लूंगा। हम दोनों यहाँ साथ ही रहेंगे। .... जाओ, जल्दी मरो । ’’ जगदीश्वर ने प्रसन्न हो कर आज्ञा दे दी।
कवि बाहर खुली हवा में निकला ...... और मयखाने में जा कर बैठ गया। जाम आया तो थोड़ी सी शराब छलका कर बोला - ‘‘ जगदीश्वर ...... तुम्हारे लिए। ’’

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मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

किस्मत का दरवाजा


                   जगदीश्वर सो चुके थे . आधी रात को एक नौजवान नशे में धुत्त आया और घंटियाँ बजने लगा . जगदीश्वर को उठाना पड़ा.
                 युवक नाराज था, बोला --" मैं सात भाइयों में छोटा हूँ . ना मुझे ठीक से खाना मिला, ना ही पढाई -लिखाई हुई, कोई हुनर भी सीख नहीं पाया. मेहनत बनती नहीं, कोई पूछता नहीं . ना शक्ल सूरत है ना इज्जत. तू सबके किस्मत के दरवाजे खोलता है . मैंने क्या बिगाड़ा था तेरा !! एक दरवाजा मेरे लिए नहीं खोल सकता था !? "
                  " गुस्सा मत करो युवक .... तुम्हारे लिए एक दरवाजा खोल रखा है मैंने ."
                  " कौन सा !!?" नौजवान चौंक पड़ा.
                  " राजनीति का, .... जाओ किसी नेता के पीछे हो लो . " कह कर जगदीश्वर वापस सो गए .


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हलो जगदीश्वर !!

               

             
 रेगिस्तान पार करते आज तीसरी सुबह हो रही थी . लगा कि वह रास्ता भटक गया है, पिछले छत्तीस घंटों में उसे कोई दिखा नहीं, न इंसान , न पशु -पक्षी.... और तो और सांप-बिच्छु भी नहीं. उसे रह रह कर घबराहट सी होने लगी .
                 अचानक एक जगह काँटों वाली नागफनी का समूह दिख पड़ा. पास जा कर देखा  तो काँटों के बीच एक फूल खिल रहा था . वह फूल को देखता रहा, उसे बहुत राहत महसूस हुई   .... अचानक मुस्कराते हुए बोला -- " हलो जगदीश्वर !!"

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

रोज नई आरती

       
       
हार कर हरद्वारी प्रसाद ने मंदिर आना बंद कर दिया. महीनों गुजर गए, एक दिन रास्ते में टकराए तो जगदीश्वर ने पूछा - "क्यों हरद्वारी ! बहुत समय हुआ तुम मंदिर नहीं आये ?"
              "क्या करूँ आ कर !, आप  मेरी तरफ ध्यान ही कहाँ देते हो ! " हरद्वारी ने शिकायत की .
              " ध्यान तो तभी दे पाउँगा जब तुम आते रहोगे ."
              "आता तो रहा था, आरती भी रोज करता था . पर लगता है आपको आरती की आदत पड़ गई है, आप आरती व्यसनी हो गए हो ."
              " आरती व्यसनी मैं नहीं आरती करने वाले होते हैं. रोज रोज एक बेसुरी, फूहड़ और कर्कश आरती सुनना मुझे भी अच्छा नहीं लगता है ." जगदीश्वर ने आपनी पीड़ा बताई .
              " अब रोज नई आरती कहाँ से आयेगी आपके लिए !!?"
              " गरज से बड़ा गुरु कोई नहीं है. ............अपने बॉस के सामने
रोज नई आरती कैसे गा लेते हो !?"

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सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

रचनाकारों के बीच रिश्तेदारी !

                 
जगदीश्वर भोर में टहलते हुए घाट की ओर निकल आये . देखा एक व्यक्ति पूर्व की ओर मुख किये पाषण-प्रतिमा बना बैठा है !! पूछा - "कौन हो तुम ?"
" लोग मुझे कवि जानते हैं ." उसने कहा.
" अच्छा !! .... मैं जगदीश्वर हूँ ... जगदीश्वर , स्रष्टि को रचने वाला ."
" हूँ ..... लोग ऐसा ही समझते हैं ."
" लोग समझते है !!! तुम नहीं समझते !? ... सब मुझे परमपिता मानते है ... तुम ?"
जगदीश्वर को बुरा लगा .
" लोगों का मानना ही बड़ी बात है ."  कवि बोला .
" तुम भी मान सकते हो .....मुझे खुशी होगी पुत्र ."
" रचनाकारों के बीच रिश्तेदारी महत्वपूर्ण नहीं होती है जगदीश्वर . "
जगदीश्वर कुछ कहना चाहते थे, लेकिन  बोले नहीं .
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