सोमवार, 10 सितंबर 2012

विवशता !


                     मंदिर में देर रात कुछ लोग मुंह ढंके जगदीश्वर  के सामने आए । पूजन किया, भेंट चढ़ाई और बोले - ‘‘ हम डाकू हैं । इस समय गांव में डाका डालने जा रहे हैं । हे जगदीश्वर ......  आप कृपा कर हमें आशीर्वाद  दीजिए कि तगड़ा माल लूटने को मिले । ’’
                   जगदीश्वर  ने कहा - ‘‘ तथास्तु । .... सफल भव । ’’
                   डाकू चले गए । पास बैठी देवी कुछ समझ नहीं पाईं । वे घूरने लगीं .
                   जगदीश्वर  बोले - ‘‘  घूरो मत , ..... सदा सच बोलने वालों का साथ देना और सहायता करना मेरी विवशता है देवी । ’’

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रविवार, 2 सितंबर 2012

इकतालीसवां चोर !



                       ‘‘ जगदीश्वर  !! क्या तुम्हें कुछ दिखता नहीं है !! ये तुम्हारी आंखों के सामने क्या चल रहा है ! ये .... ये लोग बेईमान हैं , झूठे हैं , लुच्चे हैं,  किसी का लिहाज नहीं है इनको ! ..... रात-दिन अपना घर भरने में लगे हैं ! .... सात-सात पीढ़ियां खाएं  इतना जमा कर लिया है इन्होंने ! ... इन्हें शरम भी नहीं आती !! ... इन्हें यह डर भी नहीं है कि कल तुम्हें मुंह  दिखाना पड़ेगा ! ... लेकिन तुम तो यहां मस्त पड़े हो ! तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है या नहीं ? ! .... मैं तुम्हारा बहिष्कार करूंगा ... तुम्हारे दर्शन  को नहीं आउंगा .... तुम्हारी पूजा भी नहीं करूंगा ... ’’ । वह नाराज आदमी पैर पटकता हुआ चला गया ।
              भौंचक जगदीश्वर  ने परदे के पीछे खड़े भक्त से पूछा - ‘‘ इसे जानते हो ? .... ये कौन था ? ’’
              ‘‘ जानता हूं जगदीश्वर  , ... ये इकतालीसवां चोर है । ’’ अलीबाबा ने उत्तर दिया ।
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रविवार, 26 अगस्त 2012

जगदीश्वर के एवजी

   पंडित जी से पता चला कि उनके घर में जगदीश्वर अतिथि होने वाले हैं । पत्नी ने कहा - ‘‘ बड़े भाग्य हमारे । लेकिन अतिथि को खिलाएंगे क्या ? ! पहला मौका है कुछ सूझ नहीं पड़ रही है । दूसरों से राय ले लो तो पता चले । ’’
                   पति सोच में पड़ गया कि किससे राय लें ! पत्नी ने फिर हड़काया - ‘‘ जरा बाहर निकलो, जो मिले उससे राय लेना । कोई भी बता देगा । ’’
                  अनमना पति बाहर निकला, बाड़े में गाय बंधी थी । सोचा गायमाता से राय लेना ठीक रहेगा, पूछा - ‘‘ घर में अतिथि आने वाले हैं, उनका सत्कार कैसे करूं ? ’’
                      ‘‘ अच्छी ताजी घास खिलाओ ... हरी हरी । ’’ गाय ने कहा ।
                  पति खुश  हुआ, ..... सामने तोता था पिंजरे में । सोचा एक से भले दो, इससे भी राय ले लें ।
                   तोते ने कहा -  ‘‘ एक अमरूद और दो-तीन हरी मिर्च से उत्तम कुछ नहीं है । ’’
                  पास में ही एक जोड़ा पालतू कबूतर गुटर-गूं कर रहा था, उससे भी पूछा, तो बोला - ‘‘ एक मुट्ठी ज्वार के दाने से अच्छा सत्कार हो सकता है । ’’
                  बाहर की दीवार के पास रहने वाली मादा सुअर अपने बच्चों के साथ पड़ी थी, वह बोली - ‘‘ पीछे गली में छोड़ देना, ........ इससे अच्छा सत्कार संसार में कुछ नहीं है । ’’
                   पति ने लौट कर सबकी राय पत्नी को बताई तो वह भ्रम में पड़ गई । दोनों सलाह कर पंडितजी  के पास गए और  उनकी राय जानी ।
                     वर्षों हो गए, -------  पति-पत्नी प्रतिदिन भोग लगा रहे हैं और जगदीश्वर की एवज में पंडितजी स्वीकार कर रहे हैं ।
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शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

मदद !

           जन्मदिन पर भियाजी दलबल के साथ मंदिर पहुंचे, पूजन किया और हाथ जोड़ कर जगदीश्वर  से कहा कि - ‘‘ मैं नगर में एक अंधशाला खोलना चाहता हूं । आप मदद कीजिए । ’’
            जगदीश्वर बोले - ‘‘ नगर में कोई अंधा तो है नहीं !! फिर क्यों .... ?! ’’
             ‘‘ इसीलिए तो आपकी मदद चाहिए प्रभु । .... जनमदिन मनाने के लिए एक अंधशाला तो हर बड़े नेता के लिए जरूरी है ।"
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मंगलवार, 26 जून 2012

भ्रम और विश्वास

" तुम इतने समझदार हो फिर भी नशा करते हो !! ये तुम्हें शोभा नहीं देता है ! "
" तुम नहीं समझोगे .... नशे में मुझे जगदीश्वर दीखते हैं ."
" क्या मूर्खों सी बात कर रहे हो !! ..... नशे में जगदीश्वर नहीं दीखते है ... भ्रम आवश्य होता है ."
" तुम क्या कहना चाहते हो !? .... जगदीश्वर एक भ्रम हैं ? "
" मैंने कहा  कि नशे में भ्रम होता है . मानो  इस बात को . "
" चलो माना ......  किन्तु भ्रम पर विश्वास करने का कोई और तरीका है तुम्हारे पास ? "
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बुधवार, 28 मार्च 2012

वर्दी .......


                        सब-इंस्पेक्टर पाण्डे तिलमिलाया सा जगदीश्वर  के पास पहुंचा - ‘‘ देखो जगदीश्वर , वो लाल बाबा हवा में से आपकी मूर्ति निकाल कर लोगों को मूर्ख बना रहा है और ठग रहा है । इसका कुछ कीजिए । ’’
‘‘ लोगों की गलती है । उन्हें लाल बाबा की चालाकी समझना चाहिए । ’’ जगदीश्वर  बोले ।
              ‘‘ आप उसको कुछ दंड दीजिये ना ! ’’
             ‘‘ दोष लोगों का है ..... उसको दंड कैसे दिया जा सकता है ! ’’ जगदीश्वर  ने लाचारी बताई ।
‘‘ मेरे नाम से वसूली करने वाले को तो मैं इतना पीटता हूं कि वो अपना  नाम भूल जाता है और मेरा नाम जपते हुए हल्दी-चूना लगाता है ! ’’ पाण्डे बोला ।
                         ‘‘ तुम्हारे  पास वर्दी  है सब-इंस्पेक्टर पाण्डे । ’’
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शुक्रवार, 23 मार्च 2012

* उदार दृष्टिकोण


                  दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का फैसला दिया तो  नैतिकतावदियों ने विरोध किया । सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता विरोधी याचिकाओं की सुनवाई हो रही थी । न्यायमूर्ति के सामने केन्द्र सरकार का पक्ष आया कि समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने में  उसकी सहमति है । भारतीय समाज आईपीसी लागू होने  के पहले से समलैंगिकता के मामले में अंग्रेजों से ज्यादा सहिष्णु था । उन्होंने जोर दे कर कहा कि भारत सरकार को हाई कोर्ट के फैसले में कोई कानूनी खामी नहीं मिली है और वह इसे यथारूप में स्वीकार करती है ।
               लल्लन ने समाचार सुना तो उत्तेजित हो गए - ‘‘ ये कैसी सरकार है जी !! आखिर किधर ले जाना चाहते हैं देश  को !! कहां तो गांधी जी ने ब्रहम्चर्य की शिक्षा  दी थी और कहां ये फूहड़पन !! ’’
‘‘ मजबूरी में सब करना पड़ता है भाई । ’’ विशेषज्ञ बोले .
‘‘ मजबूरी ! ....... ऐसी भी क्या मजबूरी हो सकती है !? ’’
‘‘ जानते नहीं हो क्या कि सरकार छोटे दलों के समर्थन और सहयोग से चल रही है । ...... उदार दृष्टिकोण तो रखना ही पड़ता है । ’’
                                                                   ----

बुधवार, 21 मार्च 2012

श्रेय !!



                 जगदीश्वर  दुःखी बैठे थे । लल्लन ने पूछा तो बोले - ‘‘ दुनिया मैंने बनाई है , लेकिन अब कोई श्रेय देने को तैयार नहीं है ! ’’
               ‘‘ आप भगवान हैं , दुनिया आपने ही बनाई है भला इसमें किसे आशंका  हो सकती है !? ’’ लल्लन चकित और थोड़े क्रोधित हुए ।
         ‘‘ श्रमिक दावा करते हैं कि दुनिया उन्होंने बनाई है । ’’
         ‘‘......  ! .... उनकी बात में दम तो है ...... दुनिया मजदूरों ने ही बनाई है । ’’
               ‘‘ तुम मेरे भक्त हो या श्रमिकों के वकील !? ’’
           ‘‘ लेकिन जगदीश्वर ...... श्रमिक तो आपने ही बनाए हैं ....... आप श्रमिक बनाने का श्रेय ले लो । दुनिया बनाने का अप्रत्यक्ष सहयोग ..... ।  ’’
                ‘‘ ...... । ...... । ....... । ..... नहीं । ..... पता नहीं ..... यह श्रेय है या अपराध ! ’’ जगदीश्वर  दुःखी बने रहे ।
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सोमवार, 12 मार्च 2012

भ्रष्टाचार !


                     जगदीश्वर  सो रहे थे , मध्य रात्रि में  दरवाजे पर दस्तक हुई । सोचा कोई दुखियारा होगा, उठ कर दरवाजा खोला तो देखा तमाम अफसर हैं । पता चला कि आयकर विभाग से आए हैं, जांच करेंगे यानी छापा पड़ा है ।
दो घंटे की छानबीन के बाद अफसर बोला - ‘‘ तीनों तहखाने देखने के बाद साफ होता है कि आपके पास आय से अधिक संपत्ती है । ’’

‘‘ भक्तजन चढ़ा जाते हैं । इसमें मैं क्या कर सकता हूं ! ’’ जगदीश्वर  ने आय का प्रश्न साफ  करने का प्रयास किया ।
‘‘ भक्त सौ-पचास रुपए चढ़ाते होंगे ? ’’
‘‘ नहीं , बहुत से भक्त लाखों चढ़ाते हैं .... और कुछ तो उससे भी ज्यादा । ’’
‘‘ यों ही नहीं चढ़ाते होंगे । ....... आप उन पर विशेष  कृपा करते होंगे  तभी वे लाखों चढ़ाते हैं ? ’’
‘‘ सो तो है ना । बिना विशेष  कृपा पाए कोई क्यों चढ़ाएगा ! ’’ जगदीश्वर  ने आत्मविश्वास   के साथ बताया ।
‘‘ ठीक ....... , अब आप यह भी जान लीजिए कि संसार में इसी को भ्रष्टाचार कहते हैं । ’’
अफसर ने चालान के कागज निकालते हुए कहा ।
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शनिवार, 10 मार्च 2012

* कर्मफल . . . .

               अनन्य भक्त नामदास त्यागी को मौका मिला तो उसने जगदीश्वर से पूछा - " प्रभु मेरे भाग्य में कैसी म्रत्यु है ?"
" जैसी सब की होती है नामदास ." जगदीश्वर मुस्कराते हुए बोले .
" वो तो ठीक है प्रभु , पर इतना तो बताइए की मेरी म्रत्यु कैसे होगी ?" नामदास बच्चों सा हठ करने लगे तो जगदीश्वर को बताना पड़ा की - " तुम्हारी म्रत्यु पानी में डूबने से होगी ".
              तीन - चार साल बाद नामदास अस्पताल में पड़ा जगदीश्वर को पुकार रहा था . पंद्रह दिनों की पुकार के बाद आखिर जगदीश्वर को आना पड़ा .
         " ये क्या जगदीश्वर !!! ... आपने मुझसे झूठ कहा की मेरी म्रत्यु पानी में डूबने से होगी ! ... ये देखो ..... डाक्टर  कहते हैं कि मुंह का केंसर आखरी स्टेज पर है !! अब बचना मुश्किल है . ... आपने झूठ क्यों कहा !?"
       " मैनें झूठ नहीं कहा था नामदास . तुम्हारे भाग्य में म्रत्यु पानी में डूबने से ही लिखी है .... तुम्हारी ये म्रत्यु भाग्य कि नहीं कर्म कि है . मैं केवल भाग्य लिखता हूँ ..... कर्म और कर्मफल के लिए व्यक्ति स्वयं उत्तरदायी होता है . "
                                                                         _______

* स्वर्ग में लाल झंडा !

                 मंदिर में कोई नहीं था , कामरेड ने पहले फूल चढ़ाये , दीपक और अगरबत्ती जलाये , लाल -पीला कपड़ा , कुछ फल और मिठाई अर्पित की , अंत में हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगे .
           जगदीश्वर चौकें ! पूछा -  " कामरेड !! .... तुम यहाँ ! सब कुशल तो है ? "
          " वृद्ध हो चला हूँ जगदीश्वर .  कभी भी जाना पड़ सकता है  . "  कामरेड बोले .
                   " कहो , मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ ? "
                   " मैनें जीवन भर गलतियाँ की ...... , यदि क्षमा कर देते तो ....."
                   " ठीक  है , क्षमा किया . ..... और बोलो क्या चाहते हो ? "
                   " स्वर्ग की इच्छा है , अगर ......"
                   " चलो ठीक है , तुम्हारे लिए स्वर्ग भी ......."
                   " एक बात और थी जगदीश्वर ...."
                   " हाँ हाँ , बोलो ."
                   " स्वर्ग में लाल झंडे के साथ प्रवेश मिल जायेगा न ? "
       जगदीश्वर कुछ नहीं बोले .

गुरुवार, 8 मार्च 2012

* पापियों के साथ रहने की आदत डालो

" कहते हैं जब पृथ्वी पर पाप बढ़ जायेंगे तब आप अवतार लेंगे !  क्या यह सच है जगदीश्वर ?" दास बाबू ने पूछा .
" हाँ , सच है . मैं पृथ्वी पर आ चुका हूँ . तुम्हारे सामने हूँ . " जगदीश्वर बोले .
" तो फिर कुछ करते क्यों नहीं !?"
" क्या करूँ ?!"
" धर्म की रक्षा कीजिये , और क्या ! " दास बाबू ने याद दिलाया .
" धर्म है ही कहाँ जिसकी रक्षा करूँ ?!" जगदीश्वर ने लाचारी बताई .
" तो पाप का नाश कीजिये , पापी  तो हैं , उन्हें मारिये  . "
" कैसे मारूं , ..... रात- दिन करोड़ों पापियों और खूंखार भक्तों  बीच अपने को घिरा पाता हूँ तो खुद मेरी घिग्घी बांध जाती है ."
" फिर मैं क्या करूँ ? "
" तुम भी कुछ नहीं कर सकते हो ......पापियों के साथ ही रहने की आदत डालो भक्त . "

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

स्वर्ग !!!

लल्लू प्रसाद  ने जगदीश्वर से पूछा -  " तनिक ये तो बताइए जगदीश्वर , स्वर्ग होता कैसा है ? "
" स्वर्ग बहुत सुन्दर होता है . " जगदीश्वर बोले .
" वहाँ क्या क्या होता है ? तनिक खुल कर बताइए . "
" सुन्दर अप्सराएँ होतीं हैं , मधुर संगीत होता है , नृत्य - गान होते हैं , देवता लोग सोमरस का मन चाहा सेवन करते हैं , आमोद प्रमोद होता है , नारद जी सूचनाएं लेते - देते रहते हैं , सब लोग आनंद और मद में डूबे रहते हैं .............. "
" अरे तो यों कहिये न कि ...... स्वर्ग भले आदमियों के रहने कि जगह नहीं है . "
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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

भस्मासुर........

                  " सबसे पहले आप मुंह मीठा कीजिये जगदीश्वर , मेरी नौकरी आज पक्की हो गई है ." रमेश ने मिठाई आगे की .
                  " अरे वाह  !! बधाई . प्रसन्न रहो . तुम्हें आशीर्वाद . "     जगदीश्वर ने मुंह मीठा किया .
                  " रात-दिन मेहनत की ..... तब कंहीं आज यह दिन देखने को मिला है . " रमेश ने बताया .
                  " परिश्रम का फल तो मिलता ही है . अब  खूब मन लगा कर काम करना , आगे और सफलताएँ मिलेंगी ."    जगदीश्वर ने हौसला दिया .
                  " सफलता तो मिल गई . नौकरी पक्की . ..... अब काम - वाम करने की जरुरत नहीं है . "      रमेश बोला .
                  " अरे !! शुभ शुभ बोलो रमेश . कहीं सरकार निकम्मा कह कर निकल दे तो !? "
                  " आप चिंता मत करो  जगदीश्वर , हमारे पास यूनियन है , कोर्ट है , कानून है , वकील है . स्थाई कर्मचारी के पास भस्मासुर की ताकत होती है . एक बार तथास्तु कह देने के बाद सरकार  उससे डरती है . " 

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

लाचारी !!


                   मंदिर के पीछे बलात्कार हुआ । पीड़ित युवती फटे कपड़ों और तार-तार इज्जत के साथ जगदीश्वर  के सामने पहुंची  -- ‘‘ प्रभु !! .... तुम्हें सब पता है क्या हुआ । तुम्हारे मंदिर के पीछे ही हुआ !!! .... न्याय कीजिए प्रभु । ’’
                ‘‘ शांत  हो जाओ । मैं जानता हूं , मुझे सब पता है ......... , कहो , तुम्हें कितना मुआवजा चाहिए ? "      
               ’’जगदीश्वर ने उदारता की तिजोरी पर हाथ रखते हुए पूछा ।
               ‘‘ मुझे मुआवजा नहीं, न्याय चाहिए । आप समर्थ हैं, उस दुष्ट को कड़ी से कड़ी सजा दीजिए जगदीश्वर ।’’
              ‘‘ मुझे क्षमा करो देवी । केवल मुआवजा देना मेरे हाथ में है । .......  ‘वो’ मेरा परम भक्त है । ’’
             ‘‘ आपका भक्त हुआ तो क्या ‘वो’ कुछ भी कर लेगा !!? ’’
             ‘‘ उसकी भक्ति के आतंक के आगे मैं लाचार हूं देवी । मुआवजे के अलावा मेरे और तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है । ’’
               ‘‘ तो  ............... ठीक है , ......... जैसी आपकी इच्छा । ........ आप जगदीश्वर हैं । ’’
                       जगदीश्वर ने पांच हजार रुपए दे कर युवती को बिदा किया ।
                  अभी वह कुछ दूर ही गई थी कि दूसरा भक्त आ गया । बोला - ‘‘ अब तो मुआवजा तय हो गया है , चाहो तो पहले ले लो ।  ’’

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बाजार में रिश्ते !!


          लड़की ने एक भद्दा सा इशारा  किया , बोली - ‘‘ चलता है क्या ?’’
‘‘ लड़की ! मैं जगदीश्वर  हूं । ’’ चौंकते  हुए जगदीश्वर  ने बताया ।
‘‘ जगदीश्वर  हो या कि परमेश्वर , मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । माल तो है ना पाकेट में ? ’’
‘‘ मैं तुम्हारे पिता जैसा हूं । ’’
‘‘ मुझे ले जाने वाले ज्यादातर पिता जैसे ही होते हैं ।’’
‘‘ मुझे क्षमा करो देवी । ’’ जगदीश्वर  ने हाथ जोड़ दिए ।
‘‘ बाजार में रिश्ते ले कर मत निकला करो जगदीश्वर   । ’’ लड़की तुनक कर दूसरे आदमी की ओर चल दी ।

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

संयोग !



                  ‘‘ आप से कुछ छुपा तो है नहीं जगदीश्वर , आप मन की हर बात जानते हैं ...... जीतने के बाद मैं पहले अपना घर भरूंगा उसके बाद ही दूसरे काम करूंगा , बस आपकी कृपा रहे । ’’ हार फूल चढ़ाते हुए उम्मीदवार ने हाथ जोड़े ।
                पीछे दूसरा उम्मीदवार भी था , उसने पहले की बात सुन ली ।
               अपनी बारी आने पर वह हाथ जोड़ कर बोला - ‘‘ मैं उसकी तरह झूटा और जल्दबाज नहीं हूं । मैं पहले आपका घर भरूंगा उसके बाद अपना । बस आपकी कृपा रहे । ’’
               दूसरा उम्मीदवार  जीत गया । जगदीश्वर  ने कहा-- "यह संयोग है "।