मंगलवार, 18 अगस्त 2015

जगदीश्वर का भाग्य !!

                 
     जगदीश्वर के सामने दो  बूढ़े रोज शाम दर्शन  करने आते हैं।दर्शन  तो ठीक है, शिकायतों का अंबार लगाते हैं। जगदीश्वर  को दोषते हैं, कभी किस्मत को कोसते हैं। हमेशा  अपने दुःख-दर्द का रोना।
                       बात उनदिनों की है जब उत्तराखण्ड का प्रलय  हो चुका था। हजारों लोग फंसे, सैकड़ों लापता हुए। कष्ट इतने कि सुनने वालों के प्राण लप्प-धप्प करने लगें। टीवी पर खबरें और दृष्य देख कर तो जान ही सूख गई। 
                    शाम को दोनों आए। बोले- ‘‘ हे जगदीश्वर  तेरा लाख लाख शुक्र  है, हमें वो सब नहीं भोगना पड़ा। तुम्हारे कारण हम यहां सुरक्षित और सुखी हैं। हम सौभाग्यशाली हैं। हम अपनों के साथ हैं, परिवार में हैं। सब कुशल है, कृपा है तुम्हारी। ऐसा ही बनाए रखना प्रभु। ’’
                      उनके जाने के बाद जगदीश्वर देवी से बोले - ‘‘ मैंने तो कुछ भी नहीं किया !! फिर भी लोग मेरे कारण अपने को दुःखी और कुछ अपने को सुखी महसूस कर रहे हैं !!
                   देवी क्या कहतीं, बोलीं-‘‘ कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए ये अफवाह फैला रखी है कि आपकी की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है।’’
                     ‘‘ किन्तु ये अफवाह है, षड़यंत्र है। ..... तुम तो जानती हो देवी !’’
                    ‘‘ भाग्य के लिखे का आप स्वयं भी क्या कर सकते हो जगदीश्वर  ।’’
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