बुधवार, 27 जुलाई 2011

* रिफिल ....


                कचरे के ढ़ेर में दूसरी रिफिल मिल गई तो उससे रुका नहीं गया , वह फूट पड़ी । बोली - ‘‘ क्या बताऊँ  बहन ! उंचे खानदान की हूं , कीमती पेन में घर था मेरा  , जब तक रही कागज पर मोती उतारे । रखने वाले ने हमेशा  सीने से लगा के रखा , कुछ खास मौकों पर तो मेरी पूजा भी की , देवस्थान पर भी सजाया । कितनी ही बार मेरे माध्यम से खुशियों  की इबारत लिखी गई ...... मेरी पूरी इंक उनकी मर्जी पर खर्च हो गई तो आज ...... उन्होंने ऐसे निकाल कर फेंक दिया......  जैसे मैं एक बोझ हूं !!  एक बार भी नहीं सोचा !!! ’’
         ‘‘ दुःख मत कर बहन । ’’ दूसरी रिफिल ने कहा । ‘‘हमारा क्या है ....  हम तो हैं ही रिफिल । ...... अनुपयोगिता के कारण तो वृद्धाश्रम भरे पड़े हैं । ’’

* सच बात !!


                      ‘‘ लोग कहते हैं कि ईमानदारों को राजनीति में आना चाहिए लेकिन साफसुथरी छबि वालों को कोई पूछता नहीं है ! न इधर चैन है ना उधर । समझ में नहीं आता कि आखिर जनता चाहती क्या है ! ये तुमने कैसी दुनिया और कैसे लोग बना दिए जगदीश्वर  !! ’’
जगदीश्वर  इस समय भी कण कण में बसे हुए थे । उन्होंने सुन लिया , पूछा - ‘‘ ऐसी क्या बात हो गई हरिश्चंद्र  !? क्यों इतना नाराज हो ?! ’’
                   ‘‘ आपने ही कहा था कि ईमानदारी से बढ़ कर कुछ नहीं है जीवन में, सो ईमानदार बना रहा । जनता के कहने से चुनाव लड़ा,  लेकिन वोट नहीं  मिले ।  लोग कहते हैं कि जो आदमी अपने फायदे के लिए कुछ नहीं कर सका वो भला दूसरों के लिए क्या करेगा ! ’’
                  ‘‘ इसमें गलत क्या है हरिश्चंद्र ? ...... सच बात तो यह है कि यदि मैं पूरी तरह ईमानदार रहूं तो मुझे भी ईश्वर कौन मानेगा ? ’’ कह कर जगदीश्वर  मुड़ गए ।

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सोमवार, 25 जुलाई 2011

* इस बार भी विकल्प नहीं !

  एरिया का भाई इंदर हफ्ता वसूलने स्कूल मास्टर दधीच दास  के सामने प्रकट हुआ.  उसे पता चल गया था कि दधीच दास का ब्लड ग्रुप एबी पाजिटिव है । हाथ जोड़ कर बोला - ‘‘ माड़साब आप महारिसी समान हें । इस बार हपते में मेरे-को आपसे रुपिये नईं चइये .......’’
            जनगणना सूचि में व्यस्त दधीच दास ने देखा कि भाई-इंदर के साथ उसके शूटर  भी खड़े हैं । पूछा - ‘‘क्या चाहिये ? मैंने तो दो सौ रुपए रखे हैं हमेशा  की तरह । ’’
          ‘‘ आप तो महारिसी हैं , सास्त्रों में लिखा हे कि पेले कभी आपने अपनी हड्डियां दी थीं । आज मेरे-को आपकी किडनियां चइये । महारिसी , ये चीजें दे कर आप महान बन जाएंगे , अमर हो जाएंगे और मेरे भाई को जिन्दगी मिल जाएगी । ’’ भाई इंदर ने घूरते हुए आग्रह किया ।
          दधीच दास की घिघ्घी सी बंध गई । कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले - ‘‘ क्या इस बार भी कोई विकल्प नहीं है ? ‘‘
          ‘‘ नहीं । ’’ इंदर ने दो टूक उत्तर दिया ।

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शनिवार, 23 जुलाई 2011

* अपने भाई !

            दंगे की खबर फैलते ही उसने दुकान बंद की और स्कूटर घर की ओर दौड़ा दिया . अचानक एक मोड़ पर छः-सात लोगों के झुण्ड ने उसे रोका ,"  क्यों बे , कौन है तू ? .... हिन्दू  या मुस्लमान ? ..... नाम बता अपना ....."

           वह डर गया , घिग्घी सी बंध गई , फिर भी इतना तो समझ में आ ही रहा था कि नाम बताने में क्या जोखिम है . 
           दंगाई उसे जानना चाहते थे और ठीक उसी तरह वह भी उन्हें .  पहचान में नहीं आ रहे हैं कि हिन्दू हैं या मुसलमान ! 
           " अबे सेल नाम बता अपना .... वरना मरेगा ...." तलवार और आँखें दिखाते हुए एक बोला .
           " मार दो साले को ....... क्या फर्क पड़ता है ...." दुसरे ने कहा.
            " ऐसे नहीं चलेगा ..... इसकी पेंट खोलो ...... उतार बे ......... अपनी पेंट उतार ......... दिखा साले अपना आई कार्ड ."
          " अबे यार इतना टाइम नहीं है हमारे पास . .... मार दो साले को .... " एक ने तलवार उठाई .
          " एक सेकण्ड .... एक सेकण्ड . देख लो पहले .... कौन है ... पकड़ो साले को ... और उतारो इसकी पेंट . "
          मौत उसके बिलकुल सामने थी . उसे लगा कि वह अब कुछ ही क्षणों का मेहमान है . उसे बेहोशी छाने  लगी ..... दो लोगों ने उसे सड़क पर पटक दिया , बाकि ने उसकी पेंट खींच ली ..... देखा !..... दोबारा देखा ! ............" अरे ! ... ये तो अपना है ! .... अपना भाई ! .... भाई है यार अपना .! ...."
           उसे खड़ा कर हौसला देने के लिए सबने पीठ थपथपाई . एक ने गले लगाया , बोला -" जा ..... निकल जा जल्दी से ..... घर में तेरे बीवी - बच्चे घबराए हुए रह देख रहे होंगे . "
अपने भाई !

प्रेम करो ....



          करमचंद काम पर जाने के लिए निकल रहे थे । देखा कि जूते में मेंढ़क दुबका बैठा है । पता नहीं क्या सूझा , उन्होंने मेंढ़क को तोते के खाली पड़े पिंजरे में डाल कर बंद कर दिया । 
        करमचंद की पत्नी सुलक्षणा को यह बात अच्छी नहीं लगी , बोली - ‘‘ ये क्या !! .... मेंढ़क भी कोई इस तरह पालता है !! लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ?! ’’
            ‘‘ कहने वाले पागल होंगे तुम्हारी तरह । अरे इतना तो मालूम होना चाहिए कि मेंढ़क हमारी भाषा नहीं समझता है, फिर उसे क्यों कुछ कहेंगे ? ’’ करमचंद ने कहा ।
       ‘‘ मुझे भी मालूम है कि मेंढ़क हमारी भाषा नहीं समझता है । लोग हमें तो कहेंगे।’’ सुलक्षणा बोली ।
       ‘‘ क्या कहेंगे ?! ’’
       ‘‘ यही कि तोता पाला जाता है , मेंढ़क पाल लिया !!’’
       ‘‘ जैसा तोता वैसा मेंढ़क । क्या फर्क है ? ’’
       ‘‘ तोता राम राम बोलता है । ’’
       ‘‘ अपने आप बोलता है ? ’’
       ‘‘ नहीं , उसे सिखाओ तो सीख जाता है और राम राम बोलता है । ’’
       ‘‘ तो इसे सिखा दो , ये भी बोलेगा राम राम । ’’
       ‘‘ मेंढ़क भी कहीं राम राम बोल सकता है !! बात करते हो ! ’’
       ‘‘ तुम पहले से ही मान कर चलोगी तो तुम्हें उसकी राम राम समझ में नहीं आएगी । ’’
        ‘‘ मैं मूर्ख नहीं हूं । तुम ज्यादा बुद्धिमान हो , तुम्हीं सिखा कर बताओ तो जानूं । ’’
       करमचंद सुबह-शाम  जब भी समय मिलता मेंढ़क को राम राम सिखाने लगे ।
      ‘‘ बोल बेटा मेंढ़क राम राम ’’
      ‘‘ टर्र टर्र - टर्र टर्र ’’
      ‘‘ बोल राम राम ’’
      ‘‘ टर्र टर्र ’’
      ‘‘ कितना भी माथा फोड़ लो , वो मेंढ़क है , टर्र टर्र ही करेगा । ’’ सुलक्षणा बोली ।
      ‘‘ इतना जानती हो कि मेंढ़क है, पर ये नहीं समझ रही हो कि वो राम राम ही बोल रहा है । ’’
      ‘‘ अब इतना भी नहीं समझती क्या !!? वो साफ टर्र टर्र ही बोल रहा है ! ’’
      ‘‘ प्रिये , दरअसल तुम अपने चक्षु और ज्ञानपट बंद किए बैठी हो । तोते के प्रेम में तुम्हें उसकी टें-टें राम राम जैसी लगती है । तुम जरा इस मेंढ़क से प्रेम तो करो .... देखो वो भी तुमसे राम राम ही बोलेगा ।
      " मेंढक से प्रेम !! किसी हालत में नहीं . "
      " तो फिर तुम्हें मेंढक की राम राम कभी नहीं मिल सकेगी ."

भले आदमी !!



                                    भले आदमी को पता नहीं था कि यहाँ गाड़ी पार्क करना मना है । कर दी । लौटे तो देखा कि एक पुलिस मैन गाड़ी पर हाथ रखे उनकी प्रतीक्षा कर रहा है । भला आदमी सहमा पर सामान्य बना रहा । मुस्कराते हुए उसे देखा और जेब से चाबी निकाली । 
                 ‘‘ ये आपकी गाड़ी है ? ‘‘ पुलिस मैन ने पूछा ।
                 भले आदमी की ‘हाँ ‘ सुन कर उसने बताया कि रांग पार्किंग पर चालान बनेगा , दो सौ पचास रूपए दण्ड देना होंगे, तुरंत  ।
                भले आदमी ने बताया कि वो भला आदमी है । खुद ईमानदारी से कार्य करता है और दूसरों को ऐसा करने के लिये प्रोत्साहित करता है । उसे मालूम नहीं था कि ये नो पार्किंग जगह है । सच में ।
               पुलिस मैन ने कहा कि वो भी भला आदमी है और भले आदमियों की हमेशा  मदद करता है । उसने बताया कि ईमानदारी ,शिष्टता  और सहयोगी स्वभाव के कारण उसे अक्सर ईनाम मिलते रहते हैं ।
               भले आदमी ने प्रसन्न हो कर पुलिस मैन से हाथ मिलाया , उसकी पीठ थपथपाई और पचास रूपए ईनाम में दिये । कहा कि महकमें को आप जैसे भले लोगों पर गर्व है ।
             पुलिस मैन ने धन्यवाद दिया और कहा कि समाज में आप जैसे भले आदमी सब हो जाएं तो फिर हमें कोई शौक  तो है नहीं चालान बनाने का ।
             दोनों भले आदमी चल दिये , किसीने पलट कर दूसरे को नहीं देखा ।

जवाहर चौधरी

- कुत्ते !

             मिडिया वाले ख़ुफ़िया  कैमरों  से रिश्वत लेने वालों को बेनकाब करने लगे . लेकिन मात्र इतनी सी बात पर कोई कल्याणकारी परम्परा बंद नहीं की जा सकती थी . 

            लल्लन  प्रसाद जब भी कोई बड़ा हाथ मारते जगदीश्वर को भेंट अवश्य चढाते और पार्टी भी करते . जगदीश्वर को कोई दिक्कत नहीं थी , लेकिन एक दिन बातों बातों में यूँ ही कहा -- " लल्लन बाकी सब तो ठीक है , लेकिन ये मिडिया वाले आजकल बड़े तेज चल रहे हैं . तुम्हारे साथ कहीं मुझे भी बदनाम न कर दें . "

               " आप चिंता मत कीजिये प्रभु  . हम लल्लन हैं , कोई लल्लू - वल्लू  नहीं . रिश्वत हम नहीं लेते , हमारा कुत्ता लेता है और फ़ौरन हमारी देवी को दे आता है . " लल्लन ने धीरे से बताया .

                " लेकिन मिडिया वाले तुमसे कम नहीं हैं . वे कुत्ते को पैसा लेते दिखा सकते हैं ! " जगदीश्वर ने शंका की .
                " तो दिखाएँ न . देश में कोई भी व्यवस्था या कानून ऐसा नहीं है जो कुत्तों को अपना काम  करने से रोक सके ..... आप तो भोग लगाइए प्रभु , ..... आपका कम सिर्फ भोग लगाना है ." 

                  लाचार जगदीश्वर ने मुस्करा कर अपने को प्रसंग से हटा लिया .


शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

* पूछपरख !!

        ‘‘ अरे बुढ़उ ! ये कौन सा शौक  पाल लिए हो इस उमर में !! दो-दो कुत्ते ! ... ऐसे ठाठ हैं ! ’’ जगदीश्वर ने मार्निंग वाक पर अपने मित्र इन्द्रप्रताप सिंह को दो कुत्तों को टहलाते देख छेड़ा ।
        ‘‘ करना पड़ता है यार , सब करना पड़ता है । ’’ आई.पी.सिंह बोले ।
        ‘‘ तूने तो जिन्दगी में कभी कुत्ता पाला नहीं ! और इस बुढ़ापे में दो-दो कुत्तों के आगे कूं-कूं करने में मजा आ रहा है क्या ?! .... ऐसा कितना मिलता है सरकारी पेंशन  में ! ’’
        ‘‘ वो बात नहीं है यार , ........ एक कुत्ता बड़ी बहू ले आई अपने मैके से  ......तो  दूसरा छोटी ले आई .... जरुरी था ना । .... अब इनकी पूछपरख पर ही मेरी पूछपरख निर्भर करती है । ’’
       जगदीश्वर ने कुत्तों से बचते हुए सिंह की पीठ पर तसल्ली का हाथ रखा और आगे बढ़ गए ।