हार कर हरद्वारी प्रसाद ने मंदिर आना बंद कर दिया. महीनों गुजर गए, एक दिन रास्ते में टकराए तो जगदीश्वर ने पूछा - "क्यों हरद्वारी ! बहुत समय हुआ तुम मंदिर नहीं आये ?"
"क्या करूँ आ कर !, आप मेरी तरफ ध्यान ही कहाँ देते हो ! " हरद्वारी ने शिकायत की .
" ध्यान तो तभी दे पाउँगा जब तुम आते रहोगे ."
"आता तो रहा था, आरती भी रोज करता था . पर लगता है आपको आरती की आदत पड़ गई है, आप आरती व्यसनी हो गए हो ."
" आरती व्यसनी मैं नहीं आरती करने वाले होते हैं. रोज रोज एक बेसुरी, फूहड़ और कर्कश आरती सुनना मुझे भी अच्छा नहीं लगता है ." जगदीश्वर ने आपनी पीड़ा बताई .
" अब रोज नई आरती कहाँ से आयेगी आपके लिए !!?"
" गरज से बड़ा गुरु कोई नहीं है. ............अपने बॉस के सामने
रोज नई आरती कैसे गा लेते हो !?"
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