बुधवार, 9 नवंबर 2011

राजा और प्रजा !!


             " देखिये जगदीश्वर !! अंग्रेजी भाषा का कैसा चस्का लग गया है लोगों को ! हिंदी के अख़बार भी अंग्रेजी के पन्ने छाप रहे हैं ! इस तरह तो आम आदमी की भाषा एक दिन मर जाएगी !! "
             " लगता है तुम हिंदी के लिए बहुत अधिक चिंतित हो ?" जगदीश्वर ने पूछा .
             " हाँ , हिंदी आम आदमी की भाषा है . "
             " अच्छा तो यों कहो न की आम आदमी के लिए चिंतित हो ! "
             " नहीं , दरअसल आम आदमी हमारी व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है . "
             " इसका मतलब ये हुआ की तुम व्यवस्था के लिए चिंतित हो ? " जगदीश्वर ने कुरेदते हुए पूछा .
             " आप समझ नहीं रहे है जगदीश्वर ! अगर हर कोई अंग्रेजी बोलने लगेगा तो हमारे बच्चों के भविष्य का क्या होगा !" 

सोमवार, 19 सितंबर 2011

वेलकम लेटर !!

                    मंदिर परिसर के बाहर आज सोलहवां दिन है पी सी पीपलगाँवकर का . वे रोज शाम चार बजे आ जाते हैं और सात बजे तक बैठे रहते है . कभी कभी आठ भी बज जाता है .
                 जगदीश्वर से रहा नहीं गया , पूछा -- " क्या बात है पी सी ? कोई परेशानी हो तो बताओ ."
               पीपलगाँवकर बोले  - " कुछ नहीं प्रभु , सेवानिवृत्त हो गया हूँ . "
               " तो इसमें दिक्कत क्या है ! .... सब होते हैं .... तुम्हारे जैसे अनेक हैं . "
             " जानता  हूँ . "
             " तो उनसे मिलो , उनके बीच उठो बैठो . तुम्हें अच्छा लगेगा . "
               " मोहल्ले की सीनियर सिटिजन सभा ने मेरा स्वागत किया था और एक वेलकम लेटर भी दिया था . "
                   " अरे वाह !! .... क्या लिखा है वेलकम लेटर में ? "
                   " लिखा है - 'आप कतार में हैं ... कृपया प्रतीक्षा कीजिये . '  ....."
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गुरुवार, 1 सितंबर 2011

समाधान


एक दिन एक दम्पत्ती बदहवास से जगदीश्वर  के पास आए , बोले - ‘‘ प्रभु हमारी लड़की पड़ौस के एक लड़के से प्रेम करने लगी है । ’’

‘‘लड़कियां समझदार होती हैं, वे प्रेम ही करती हैं । ’’ जगदीश्वर ने प्रसन्न होते हुए कहा ।
‘‘ लेकिन हम उस लड़के को कतई पसंद नहीं करते हैं  । ’’
‘‘ तो दिक्कत क्या है , आप लोग भी उसे पसंद करने लगो । ’’
‘‘ आप समझ नहीं रहे हैं प्रभु । दरअसल वो हमारी जाति का नहीं है । ’’
‘‘ तो !? ’’
‘‘ तो आप हमें ऐसा उपाय बताइये कि हमारी बेटी उससे प्रेम करना बंद कर दे , उसे दिन रात बुरा भला कहे , उससे नफरत भी करे , उसे लड़के के नाम से ही उसे चिढ़ होने लगे ...........। ’’
‘‘ ये तो बड़ा आसान है । ’’
‘‘ आसान है !! ...... तो जल्दी बताइये हमें क्या करना होगा ? ’’
‘‘ आप उन दोनों की शादी कर दीजिये । ’’

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

अनुकंपा नियुक्ति


         सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति सरल बनाने की घोषणा की । तय किया गया कि कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके परिवार के एक बेरोजगार को तुरंत नियुक्ति मिलेगी ।
       जगदीश्वर  के पडौसी विश्वजीत सिंह शाम  को घबराए से आए , बोले -     ‘‘ जगदीश्वर क्या तुम अपने यहां मुझे रात रुकने दोगे ? प्लीज ! ’’
      ‘‘ हां हां , क्यों नहीं । एक क्या दो रातें रुको । ’’जगदीश्वर बोले .
      ‘‘ एक - दो नहीं , मुझे हर रात तुम्हारे यहां गुजारना पड़ेगी । कहोगे तो किराया दे दूंगा । ’’
      ‘‘ बात क्या है आखिर !!? तुम इतने डरे हुए क्यों लग रहे हो ? !’’
      ‘‘ सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति सरल कर दी है । मैं बैठे बिठाए खतरे में आ गया हूं । ’’
      ‘‘ अनुकंपा नियुक्ति से तुम्हें खतरा !! किससे ? ’’
      ‘‘ अपने दो बेरोजगार बेटों से । ’’

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

देशहित में !


     त्योहार पर अस्पतालों के लिए एक दिन के अवकाश  का बहुत आग्रह हुआ तो स्वास्थ्य मंत्री ने जगदीश्वर  से पूछा कि स्वास्थ्य सेवकों को एक दिन की छुट्टी दे दें ?
            जगदीश्वर  बोले - ‘‘ आप मालिक हैं अपने विभाग के । दे कर देख लो । ’’

            मंत्री ने एक दिन का अवकाश  घोषित कर दिया । सारे डाक्टर-नर्स छुट्टी पर चले गए ।

            दूसरे दिन पता चला कि मरने वालों की संख्या शून्य  के करीब चली गई । प्रदेश  के श्मशानों  से धुंआ नहीं उठा ।

            मंत्रीमंडल की बैठक हुई और देश हित को ध्यान में रखते हुए भविष्य में चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में पूर्ण अवकाश  पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया ।



अतीत का बक्सा !


           लल्लन तहखाने में उथल-पुथल मचाए थे । जगदीश्वर  को पता चला तो प्रकट हुए, पूछा - ‘‘ क्या ढूंढ़ रहे हो लल्लन ? ’’
‘‘ अपना अतीत, पता नहीं अम्मा बक्सा कहां रख गईं ! ’’
‘‘ अतीत से तो तुम दुःखी थे ! क्या करोगे उसका ?’’
‘‘ भविष्य बनाने वाला जिन्न उसमें छुपा बैठा है । ’’
‘‘ पत्नी से पूछो, शायद  उसे पता हो । ’’
लल्लन ने पत्नी राबीना को आवाज लगाई । वे बोलीं - ‘‘ यहां शहर  में कहां है वो बक्सा , वह तो गांव के मकान में पड़ा होगा कहीं । ’’
‘‘ छोड़ो लल्लन, वैसे भी तुम उससे मुक्ति ही चाहते थे । ’’ जगदीश्वर  बोले ।
‘‘ नहीं जगदीश्वर, मुझे फौरन गांव जाना होगा । ... आज के युग में अतीत के बिना भविष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । ’’

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

बंटी का फैसला !

माता-पिता को बेटे के भविष्य की चिंता सता रही थी । भविष्य की चिंता यानी धन की चिंता । कैसे कमाएगा, सुरक्षित कैसे रहेगा, सम्मान कैसे बचा रहेगा आदि ।
‘‘ बंटी राजनीति में जाएगा । बस फायनल । ’’ पिता ने फैसले जैसा कुछ सुनाते हुए कहा ।
‘‘ नहीं , बंटी धर्म के क्षेत्र में अपना करियर बनाएगा । बाबा लोग अब करोड़ों में खेलते हैं, सम्मान और सुरक्षा की भी गारंटी होती है । ’’ मां ने कहा ।
‘‘ बेटे को बाबा बनाओगी !! बाबा !! .... मेरा बेटा बाबा नहीं बनेगा । साफ बात । ’’ पिता को गुस्सा आ गया ।
‘‘ तुम्हें पता भी है कि बाबा ही हैं जो संसार के सारे सुख भोगते हैं । ’’ मां अडी ।
दोनों में बहस बढ़ गई तो तय हुआ कि बंटी से पूछ लेते हैं ।
पिता ने बेटे को बुलाया - ‘‘ बेटा तुम्हारे भविष्य को लेकर हम चिंतित हैं । तुम क्या बनोगे जिसमें धन, सम्मान और सुरक्षा तीनों हो । ’’
‘‘ मैं कामरेड बनूंगा डैड । ’’ कह कर बंटी चल दिया ।

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रविवार, 7 अगस्त 2011

* पद में !

" पद्मे .... सुनों पद्मे .... . " भीड़ के बीच पतिदेव ने पत्नी को पुकारा . सुनते ही पत्नी उनके साथ हो ली .
जब वे लोग चले गए तो देवी ने जगदीश्वर से शिकायती लहजे में कहा - " देखा उन्हें !!! .... अपनी पत्नी को कितने प्रेम से पुकारते हैं ! .... पद्मे .... !  एक आप हैं ...जब देखो आम आदमी की तरह - 'सुनती हो .....सुनती हो' . " 
जगदीश्वर बोले -   " हम प्रेम से पुकारते है देवी ! ...... , अन्यों के लिए जो पदमा है , उनके लिए वो पद-में है.   और ये बात वे उस बेचारी को हर क्षण याद दिलाते रहते हैं.   ..... मनुष्य बहुत शिक्षित और जटिल हो गया है देवी .                     
                                                                 इनसे भ्रमित मत होना . "

बुधवार, 3 अगस्त 2011

* पछतावा !!


                    रात ग्यारह बजे एक (सामान्य) आदमी ने अपनी पत्नी को पीटा और घर से बाहर कर दरवाजा बंद कर लिया । उस औरत को विश्वास था कि उसका प्रेमी तुरंत आ कर उसे सम्हाल लेगा । प्रेमी तो नहीं आया, मोहल्ले का गुण्डा नशे मे धुत्त कहीं से लौट रहा था । उसने देखा तो पूरे सम्मान के साथ उसे ले जा कर अपने घर में शरण  दी । 
          दूसरे दिन सुबह जब तीनों का नशा  उतरा तो उन्हें अपनी अपनी भूल का ज्ञान हुआ । तीनों के मन में पछतावा था, लेकिन .......
                           .........सबसे ज्यादा  उस औरत के मन में  ।

* अख़बार में भगवान .



               रामनवमी भगवान राम का जन्मदिन है सो अखबार के मुख्य पृष्ठ पर राम का बड़ा सा चित्र छापा जा रहा था । लेआउट को अंतिम रूप  दिया जा चुका था कि एक बड़ा विज्ञापन आ गया । कंपनी चाहती थी कि आज रामनवमी के तमाम आफर  के साथ विज्ञापन अखबार के मुखपृष्ठ पर ही छपे । इसके लिये ऊँची  दर पर भुगतान करने को वह तैयार थी । लेकिन संपादक राजी नहीं हुए । 
            कंपनी के आदमी ने मालिक से संपर्क किया ।
            मालिक ने तुरंत आदेश  दिया कि विज्ञापन मुखपृष्ठ पर छापा जाए और भगवान को दूसरे किसी पृष्ठ पर बिना किसी विज्ञापन को हटाए उपलब्ध जगह हो तो दे  दें ।
           ‘‘ खबरों को हटाया नहीं जा सकता है , विज्ञापन हटाना नहीं है , फिर तो कठिन है । ’’ संपादक ने कहा ।
          ‘‘ ठीक है , तो फिर भगवान को हटा दो , विज्ञापन जाने दो वही हमारे भगवान हैं । ’’

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

जनता ने दिए खड़ाऊं !

‘‘ आपकी पार्टी संस्कारों और अनुशासन  वाली पार्टी है । दूसरी पार्टियों में जूते चले तो चले ..... पर आपके यहां भी !! ’’ पत्रकार ने पूछा ।
‘‘ सुधार कीजिये , जूता नहीं खड़ाऊं । ’’ भाई जी ने कहा ।
‘‘ ठीक है , आपके यहां खड़ाऊं मारी गई । ’’
‘‘ मारी नहीं गई , उछाली गई । सुधार कीजिये । ’’ 
‘‘ एक ही बात है भाई जी । ’’
‘‘ एक कैसे है !? .... रामजी ने भरत को अपनी खड़ाऊं दी थी । भरत ने उन्हें गद्दी पर रख कर रामजी के नाम से राज चलाया ...... । ..... सुधार कीजिये  ’’
‘‘ हां , चलाया , तो ? ’’
‘‘ तो क्या ! अरे भई इधर भी जनता ने अपने खड़ाऊं दिये हैं ...... कि  ल्लो .....  गद्दी पर रखो ....... और जनता के नाम पर राज करो मजे में ।  इसमें गलत क्या है ?! आप सुधार कीजिये  . ’’ भाई जी ने भगवान  के फोटो को प्रणाम करते हुए जवाब दिया ।

बुधवार, 27 जुलाई 2011

* रिफिल ....


                कचरे के ढ़ेर में दूसरी रिफिल मिल गई तो उससे रुका नहीं गया , वह फूट पड़ी । बोली - ‘‘ क्या बताऊँ  बहन ! उंचे खानदान की हूं , कीमती पेन में घर था मेरा  , जब तक रही कागज पर मोती उतारे । रखने वाले ने हमेशा  सीने से लगा के रखा , कुछ खास मौकों पर तो मेरी पूजा भी की , देवस्थान पर भी सजाया । कितनी ही बार मेरे माध्यम से खुशियों  की इबारत लिखी गई ...... मेरी पूरी इंक उनकी मर्जी पर खर्च हो गई तो आज ...... उन्होंने ऐसे निकाल कर फेंक दिया......  जैसे मैं एक बोझ हूं !!  एक बार भी नहीं सोचा !!! ’’
         ‘‘ दुःख मत कर बहन । ’’ दूसरी रिफिल ने कहा । ‘‘हमारा क्या है ....  हम तो हैं ही रिफिल । ...... अनुपयोगिता के कारण तो वृद्धाश्रम भरे पड़े हैं । ’’

* सच बात !!


                      ‘‘ लोग कहते हैं कि ईमानदारों को राजनीति में आना चाहिए लेकिन साफसुथरी छबि वालों को कोई पूछता नहीं है ! न इधर चैन है ना उधर । समझ में नहीं आता कि आखिर जनता चाहती क्या है ! ये तुमने कैसी दुनिया और कैसे लोग बना दिए जगदीश्वर  !! ’’
जगदीश्वर  इस समय भी कण कण में बसे हुए थे । उन्होंने सुन लिया , पूछा - ‘‘ ऐसी क्या बात हो गई हरिश्चंद्र  !? क्यों इतना नाराज हो ?! ’’
                   ‘‘ आपने ही कहा था कि ईमानदारी से बढ़ कर कुछ नहीं है जीवन में, सो ईमानदार बना रहा । जनता के कहने से चुनाव लड़ा,  लेकिन वोट नहीं  मिले ।  लोग कहते हैं कि जो आदमी अपने फायदे के लिए कुछ नहीं कर सका वो भला दूसरों के लिए क्या करेगा ! ’’
                  ‘‘ इसमें गलत क्या है हरिश्चंद्र ? ...... सच बात तो यह है कि यदि मैं पूरी तरह ईमानदार रहूं तो मुझे भी ईश्वर कौन मानेगा ? ’’ कह कर जगदीश्वर  मुड़ गए ।

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सोमवार, 25 जुलाई 2011

* इस बार भी विकल्प नहीं !

  एरिया का भाई इंदर हफ्ता वसूलने स्कूल मास्टर दधीच दास  के सामने प्रकट हुआ.  उसे पता चल गया था कि दधीच दास का ब्लड ग्रुप एबी पाजिटिव है । हाथ जोड़ कर बोला - ‘‘ माड़साब आप महारिसी समान हें । इस बार हपते में मेरे-को आपसे रुपिये नईं चइये .......’’
            जनगणना सूचि में व्यस्त दधीच दास ने देखा कि भाई-इंदर के साथ उसके शूटर  भी खड़े हैं । पूछा - ‘‘क्या चाहिये ? मैंने तो दो सौ रुपए रखे हैं हमेशा  की तरह । ’’
          ‘‘ आप तो महारिसी हैं , सास्त्रों में लिखा हे कि पेले कभी आपने अपनी हड्डियां दी थीं । आज मेरे-को आपकी किडनियां चइये । महारिसी , ये चीजें दे कर आप महान बन जाएंगे , अमर हो जाएंगे और मेरे भाई को जिन्दगी मिल जाएगी । ’’ भाई इंदर ने घूरते हुए आग्रह किया ।
          दधीच दास की घिघ्घी सी बंध गई । कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले - ‘‘ क्या इस बार भी कोई विकल्प नहीं है ? ‘‘
          ‘‘ नहीं । ’’ इंदर ने दो टूक उत्तर दिया ।

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शनिवार, 23 जुलाई 2011

* अपने भाई !

            दंगे की खबर फैलते ही उसने दुकान बंद की और स्कूटर घर की ओर दौड़ा दिया . अचानक एक मोड़ पर छः-सात लोगों के झुण्ड ने उसे रोका ,"  क्यों बे , कौन है तू ? .... हिन्दू  या मुस्लमान ? ..... नाम बता अपना ....."

           वह डर गया , घिग्घी सी बंध गई , फिर भी इतना तो समझ में आ ही रहा था कि नाम बताने में क्या जोखिम है . 
           दंगाई उसे जानना चाहते थे और ठीक उसी तरह वह भी उन्हें .  पहचान में नहीं आ रहे हैं कि हिन्दू हैं या मुसलमान ! 
           " अबे सेल नाम बता अपना .... वरना मरेगा ...." तलवार और आँखें दिखाते हुए एक बोला .
           " मार दो साले को ....... क्या फर्क पड़ता है ...." दुसरे ने कहा.
            " ऐसे नहीं चलेगा ..... इसकी पेंट खोलो ...... उतार बे ......... अपनी पेंट उतार ......... दिखा साले अपना आई कार्ड ."
          " अबे यार इतना टाइम नहीं है हमारे पास . .... मार दो साले को .... " एक ने तलवार उठाई .
          " एक सेकण्ड .... एक सेकण्ड . देख लो पहले .... कौन है ... पकड़ो साले को ... और उतारो इसकी पेंट . "
          मौत उसके बिलकुल सामने थी . उसे लगा कि वह अब कुछ ही क्षणों का मेहमान है . उसे बेहोशी छाने  लगी ..... दो लोगों ने उसे सड़क पर पटक दिया , बाकि ने उसकी पेंट खींच ली ..... देखा !..... दोबारा देखा ! ............" अरे ! ... ये तो अपना है ! .... अपना भाई ! .... भाई है यार अपना .! ...."
           उसे खड़ा कर हौसला देने के लिए सबने पीठ थपथपाई . एक ने गले लगाया , बोला -" जा ..... निकल जा जल्दी से ..... घर में तेरे बीवी - बच्चे घबराए हुए रह देख रहे होंगे . "
अपने भाई !

प्रेम करो ....



          करमचंद काम पर जाने के लिए निकल रहे थे । देखा कि जूते में मेंढ़क दुबका बैठा है । पता नहीं क्या सूझा , उन्होंने मेंढ़क को तोते के खाली पड़े पिंजरे में डाल कर बंद कर दिया । 
        करमचंद की पत्नी सुलक्षणा को यह बात अच्छी नहीं लगी , बोली - ‘‘ ये क्या !! .... मेंढ़क भी कोई इस तरह पालता है !! लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ?! ’’
            ‘‘ कहने वाले पागल होंगे तुम्हारी तरह । अरे इतना तो मालूम होना चाहिए कि मेंढ़क हमारी भाषा नहीं समझता है, फिर उसे क्यों कुछ कहेंगे ? ’’ करमचंद ने कहा ।
       ‘‘ मुझे भी मालूम है कि मेंढ़क हमारी भाषा नहीं समझता है । लोग हमें तो कहेंगे।’’ सुलक्षणा बोली ।
       ‘‘ क्या कहेंगे ?! ’’
       ‘‘ यही कि तोता पाला जाता है , मेंढ़क पाल लिया !!’’
       ‘‘ जैसा तोता वैसा मेंढ़क । क्या फर्क है ? ’’
       ‘‘ तोता राम राम बोलता है । ’’
       ‘‘ अपने आप बोलता है ? ’’
       ‘‘ नहीं , उसे सिखाओ तो सीख जाता है और राम राम बोलता है । ’’
       ‘‘ तो इसे सिखा दो , ये भी बोलेगा राम राम । ’’
       ‘‘ मेंढ़क भी कहीं राम राम बोल सकता है !! बात करते हो ! ’’
       ‘‘ तुम पहले से ही मान कर चलोगी तो तुम्हें उसकी राम राम समझ में नहीं आएगी । ’’
        ‘‘ मैं मूर्ख नहीं हूं । तुम ज्यादा बुद्धिमान हो , तुम्हीं सिखा कर बताओ तो जानूं । ’’
       करमचंद सुबह-शाम  जब भी समय मिलता मेंढ़क को राम राम सिखाने लगे ।
      ‘‘ बोल बेटा मेंढ़क राम राम ’’
      ‘‘ टर्र टर्र - टर्र टर्र ’’
      ‘‘ बोल राम राम ’’
      ‘‘ टर्र टर्र ’’
      ‘‘ कितना भी माथा फोड़ लो , वो मेंढ़क है , टर्र टर्र ही करेगा । ’’ सुलक्षणा बोली ।
      ‘‘ इतना जानती हो कि मेंढ़क है, पर ये नहीं समझ रही हो कि वो राम राम ही बोल रहा है । ’’
      ‘‘ अब इतना भी नहीं समझती क्या !!? वो साफ टर्र टर्र ही बोल रहा है ! ’’
      ‘‘ प्रिये , दरअसल तुम अपने चक्षु और ज्ञानपट बंद किए बैठी हो । तोते के प्रेम में तुम्हें उसकी टें-टें राम राम जैसी लगती है । तुम जरा इस मेंढ़क से प्रेम तो करो .... देखो वो भी तुमसे राम राम ही बोलेगा ।
      " मेंढक से प्रेम !! किसी हालत में नहीं . "
      " तो फिर तुम्हें मेंढक की राम राम कभी नहीं मिल सकेगी ."

भले आदमी !!



                                    भले आदमी को पता नहीं था कि यहाँ गाड़ी पार्क करना मना है । कर दी । लौटे तो देखा कि एक पुलिस मैन गाड़ी पर हाथ रखे उनकी प्रतीक्षा कर रहा है । भला आदमी सहमा पर सामान्य बना रहा । मुस्कराते हुए उसे देखा और जेब से चाबी निकाली । 
                 ‘‘ ये आपकी गाड़ी है ? ‘‘ पुलिस मैन ने पूछा ।
                 भले आदमी की ‘हाँ ‘ सुन कर उसने बताया कि रांग पार्किंग पर चालान बनेगा , दो सौ पचास रूपए दण्ड देना होंगे, तुरंत  ।
                भले आदमी ने बताया कि वो भला आदमी है । खुद ईमानदारी से कार्य करता है और दूसरों को ऐसा करने के लिये प्रोत्साहित करता है । उसे मालूम नहीं था कि ये नो पार्किंग जगह है । सच में ।
               पुलिस मैन ने कहा कि वो भी भला आदमी है और भले आदमियों की हमेशा  मदद करता है । उसने बताया कि ईमानदारी ,शिष्टता  और सहयोगी स्वभाव के कारण उसे अक्सर ईनाम मिलते रहते हैं ।
               भले आदमी ने प्रसन्न हो कर पुलिस मैन से हाथ मिलाया , उसकी पीठ थपथपाई और पचास रूपए ईनाम में दिये । कहा कि महकमें को आप जैसे भले लोगों पर गर्व है ।
             पुलिस मैन ने धन्यवाद दिया और कहा कि समाज में आप जैसे भले आदमी सब हो जाएं तो फिर हमें कोई शौक  तो है नहीं चालान बनाने का ।
             दोनों भले आदमी चल दिये , किसीने पलट कर दूसरे को नहीं देखा ।

जवाहर चौधरी

- कुत्ते !

             मिडिया वाले ख़ुफ़िया  कैमरों  से रिश्वत लेने वालों को बेनकाब करने लगे . लेकिन मात्र इतनी सी बात पर कोई कल्याणकारी परम्परा बंद नहीं की जा सकती थी . 

            लल्लन  प्रसाद जब भी कोई बड़ा हाथ मारते जगदीश्वर को भेंट अवश्य चढाते और पार्टी भी करते . जगदीश्वर को कोई दिक्कत नहीं थी , लेकिन एक दिन बातों बातों में यूँ ही कहा -- " लल्लन बाकी सब तो ठीक है , लेकिन ये मिडिया वाले आजकल बड़े तेज चल रहे हैं . तुम्हारे साथ कहीं मुझे भी बदनाम न कर दें . "

               " आप चिंता मत कीजिये प्रभु  . हम लल्लन हैं , कोई लल्लू - वल्लू  नहीं . रिश्वत हम नहीं लेते , हमारा कुत्ता लेता है और फ़ौरन हमारी देवी को दे आता है . " लल्लन ने धीरे से बताया .

                " लेकिन मिडिया वाले तुमसे कम नहीं हैं . वे कुत्ते को पैसा लेते दिखा सकते हैं ! " जगदीश्वर ने शंका की .
                " तो दिखाएँ न . देश में कोई भी व्यवस्था या कानून ऐसा नहीं है जो कुत्तों को अपना काम  करने से रोक सके ..... आप तो भोग लगाइए प्रभु , ..... आपका कम सिर्फ भोग लगाना है ." 

                  लाचार जगदीश्वर ने मुस्करा कर अपने को प्रसंग से हटा लिया .


शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

* पूछपरख !!

        ‘‘ अरे बुढ़उ ! ये कौन सा शौक  पाल लिए हो इस उमर में !! दो-दो कुत्ते ! ... ऐसे ठाठ हैं ! ’’ जगदीश्वर ने मार्निंग वाक पर अपने मित्र इन्द्रप्रताप सिंह को दो कुत्तों को टहलाते देख छेड़ा ।
        ‘‘ करना पड़ता है यार , सब करना पड़ता है । ’’ आई.पी.सिंह बोले ।
        ‘‘ तूने तो जिन्दगी में कभी कुत्ता पाला नहीं ! और इस बुढ़ापे में दो-दो कुत्तों के आगे कूं-कूं करने में मजा आ रहा है क्या ?! .... ऐसा कितना मिलता है सरकारी पेंशन  में ! ’’
        ‘‘ वो बात नहीं है यार , ........ एक कुत्ता बड़ी बहू ले आई अपने मैके से  ......तो  दूसरा छोटी ले आई .... जरुरी था ना । .... अब इनकी पूछपरख पर ही मेरी पूछपरख निर्भर करती है । ’’
       जगदीश्वर ने कुत्तों से बचते हुए सिंह की पीठ पर तसल्ली का हाथ रखा और आगे बढ़ गए ।