शनिवार, 10 मार्च 2012

* कर्मफल . . . .

               अनन्य भक्त नामदास त्यागी को मौका मिला तो उसने जगदीश्वर से पूछा - " प्रभु मेरे भाग्य में कैसी म्रत्यु है ?"
" जैसी सब की होती है नामदास ." जगदीश्वर मुस्कराते हुए बोले .
" वो तो ठीक है प्रभु , पर इतना तो बताइए की मेरी म्रत्यु कैसे होगी ?" नामदास बच्चों सा हठ करने लगे तो जगदीश्वर को बताना पड़ा की - " तुम्हारी म्रत्यु पानी में डूबने से होगी ".
              तीन - चार साल बाद नामदास अस्पताल में पड़ा जगदीश्वर को पुकार रहा था . पंद्रह दिनों की पुकार के बाद आखिर जगदीश्वर को आना पड़ा .
         " ये क्या जगदीश्वर !!! ... आपने मुझसे झूठ कहा की मेरी म्रत्यु पानी में डूबने से होगी ! ... ये देखो ..... डाक्टर  कहते हैं कि मुंह का केंसर आखरी स्टेज पर है !! अब बचना मुश्किल है . ... आपने झूठ क्यों कहा !?"
       " मैनें झूठ नहीं कहा था नामदास . तुम्हारे भाग्य में म्रत्यु पानी में डूबने से ही लिखी है .... तुम्हारी ये म्रत्यु भाग्य कि नहीं कर्म कि है . मैं केवल भाग्य लिखता हूँ ..... कर्म और कर्मफल के लिए व्यक्ति स्वयं उत्तरदायी होता है . "
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