जगदीश्वर देवी के साथ भ्रमण पर थे। तालाब किनारे एक धीर-गंभीर, सौम्य युवक पेड़ के नीचे बैठा जल में उठ रही तरंगों को देख रहा था। देवी की दृष्टि उस पर अटक गई, बोलीं-- ‘‘स्वामी, इस युवक को देखो ..... चिंतक सा लग रहा है ! इस आयु वाले आजकल माॅल में घूमते हैं, हुक्काबार में बैठते हैं, मदिरालय में अपना भविष्य और पिता का धन बरबाद करते हैं, टीवी-इंटरनेट से चिपके बैठे अपना समय नष्ट करते हैं। किन्तु जरा देखो नाथ ये यहां बैठा कुछ सोच-विचार कर रहा है !! इसे आपका आशीर्वाद मिलना चाहिए, .... प्रभु इसे समर्थ बनाइए, यह जो भी इच्छा करे, तथास्तु कहिए। ’’
‘‘ रहने दो देवी, इसे मुझसे कुछ चाहिए होगा तो मंदिर में आ कर मांग लेगा। ’’ जगदीश्वर ने आनाकानी की।
‘‘ ये जरूर आया होगा, किन्तु भीड़ के कारण आपने संज्ञान नहीं लिया होगा। चलिए ना , अभी आप फुरसत में भी हैं।’’ देवी ने हमेशा की तरह जिद की।
विवश जगदीश्वर प्रकट हुए। मांगने को कहा तो युवक बोला -‘‘ मुझे अपूर्व ज्ञान दीजिए प्रभु, ऐसा ज्ञान जिससे मैं सत्यान्वेषण कर सकूं।’’
‘‘ तुम समृद्धि मांगो युवक, सुख-सुविधाएं मांगो, सांसारिक सफलता मांगो, आमोद-प्रमोद और आनंद मांगो .... पर यह मत मांगो ...। ’’ जगदीश्वर ने युवक के सामने विकल्प रखे।
‘‘ नहीं जगदीश्वर, मुझे ज्ञान-शक्ति ही चाहिए। ’’ युवक नहीं माना।
देवी ने जगदीश्वर से फुसफुसा कर कहा -‘‘ दे दो ना। ’’
जगदीश्वर बोले - ‘‘जोखिम मत उठाओ देवी, .... मैं अपने प्रतिकूल आशीष कैसे दे सकता हूं ! ’’
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