प्राकृतिक आपदा से हजारों तीर्थयात्री मारे गए, मंदिर नष्ट हो
गया, बस्तियां उजड़ गई, पूरा
देवधाम वीरान हो गया ।
मातादीन भी सपरिवार देव-दर्शन और पुण्य
कमाने के लिए गए थे, किन्तु दुर्भाग्य .... उनका कोई बच नहीं पाया।
दुःख का पहाड़ ढ़ोते वे किसी तरह रोते, गिरते-पड़ते घर पहुंचे। भारी मन से दरवाजे का ताला खोला।
अंदर देखते ही उनकी चीख निकल गई - ‘‘ जगदीश्वर तुम !! ...... यहां !! ..... यहीं थे क्या?!’’
अंदर देखते ही उनकी चीख निकल गई - ‘‘ जगदीश्वर तुम !! ...... यहां !! ..... यहीं थे क्या?!’’
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वाह सर...मुझको कहाँ ढूंढे रे बन्दे..
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