मंदिर के पीछे बलात्कार हुआ । पीड़ित युवती फटे कपड़ों और तार-तार इज्जत के साथ जगदीश्वर के सामने पहुंची -- ‘‘ प्रभु !! .... तुम्हें सब पता है क्या हुआ । तुम्हारे मंदिर के पीछे ही हुआ !!! .... न्याय कीजिए प्रभु । ’’
‘‘ शांत हो जाओ । मैं जानता हूं , मुझे सब पता है ......... , कहो , तुम्हें कितना मुआवजा चाहिए ? "
’’जगदीश्वर ने उदारता की तिजोरी पर हाथ रखते हुए पूछा ।
‘‘ मुझे मुआवजा नहीं, न्याय चाहिए । आप समर्थ हैं, उस दुष्ट को कड़ी से कड़ी सजा दीजिए जगदीश्वर ।’’

‘‘ आपका भक्त हुआ तो क्या ‘वो’ कुछ भी कर लेगा !!? ’’
‘‘ उसकी भक्ति के आतंक के आगे मैं लाचार हूं देवी । मुआवजे के अलावा मेरे और तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है । ’’
‘‘ तो ............... ठीक है , ......... जैसी आपकी इच्छा । ........ आप जगदीश्वर हैं । ’’
जगदीश्वर ने पांच हजार रुपए दे कर युवती को बिदा किया ।
अभी वह कुछ दूर ही गई थी कि दूसरा भक्त आ गया । बोला - ‘‘ अब तो मुआवजा तय हो गया है , चाहो तो पहले ले लो । ’’
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