"महिना भर से मुझ पर पानी ढोल रहे हैं! न दिन-दिन देख रहे न रात! ... अब बर्दाश्त नहीं होता है ।" वे बोले ।
"तो मना कर देते ना ।" पत्रकार बोला ।
"सरकार फूल बरसा रही है, पुलिस पैर दबा रही है तो मना करने से मानते क्या?"
"लेकिन अब तो महिना ख़त्म हुआ ।"
"तो दूध दही वालों ने मैदान पकड़ लिया । कल भक्तों ने इक्कीस किलो आमरस से नहला दिया! दूसरे भांग ठंडाई कूड़ गए, कुछ लोग शहद चुपड़ जाते हैं! ये कोई तरीक़ा है प्रसन्न करने का!"
"भक्त हैं आपके । आनंद लीजिये और उनका कल्याण कीजिये ।"
"भक्त नहीं, भक्तासुर हैं । जाने दो मुझे । भरपाया मैं तो ।" जगदीश्वर दुखी थे ।
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