पंडित जी से पता चला कि उनके घर में जगदीश्वर अतिथि होने वाले हैं । 
पत्नी ने कहा - ‘‘ बड़े भाग्य हमारे । लेकिन अतिथि को खिलाएंगे क्या ? ! 
पहला मौका है कुछ सूझ नहीं पड़ रही है । दूसरों से राय ले लो तो पता चले । 
’’
                   पति सोच में पड़ गया कि किससे राय लें ! पत्नी ने फिर 
हड़काया - ‘‘ जरा बाहर निकलो, जो मिले उससे राय लेना । कोई भी बता देगा । ’’
 
                  अनमना पति बाहर निकला, बाड़े में गाय बंधी थी । सोचा 
गायमाता से राय लेना ठीक रहेगा, पूछा - ‘‘ घर में अतिथि आने वाले हैं, उनका
 सत्कार कैसे करूं ? ’’
                      ‘‘ अच्छी ताजी घास खिलाओ ... हरी हरी । ’’ गाय ने कहा । 
                  पति खुश  हुआ, ..... सामने तोता था पिंजरे में । सोचा एक से भले दो, इससे भी राय ले लें । 
                   तोते ने कहा -  ‘‘ एक अमरूद और दो-तीन हरी मिर्च से उत्तम कुछ नहीं है । ’’ 
                  पास में ही एक जोड़ा पालतू कबूतर गुटर-गूं कर रहा था, 
उससे भी पूछा, तो बोला - ‘‘ एक मुट्ठी ज्वार के दाने से अच्छा सत्कार हो 
सकता है । ’’
                  बाहर की दीवार के पास रहने वाली मादा सुअर अपने बच्चों 
के साथ पड़ी थी, वह बोली - ‘‘ पीछे गली में छोड़ देना, ........ इससे अच्छा 
सत्कार संसार में कुछ नहीं है । ’’
                   पति ने लौट कर सबकी राय पत्नी को बताई तो वह भ्रम में पड़ गई । दोनों सलाह कर पंडितजी  के पास गए और  उनकी राय जानी । 
                    
वर्षों हो गए, -------  पति-पत्नी प्रतिदिन भोग लगा रहे हैं और जगदीश्वर की एवज में पंडितजी स्वीकार कर रहे हैं । 
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