शनिवार, 23 जुलाई 2011

* अपने भाई !

            दंगे की खबर फैलते ही उसने दुकान बंद की और स्कूटर घर की ओर दौड़ा दिया . अचानक एक मोड़ पर छः-सात लोगों के झुण्ड ने उसे रोका ,"  क्यों बे , कौन है तू ? .... हिन्दू  या मुस्लमान ? ..... नाम बता अपना ....."

           वह डर गया , घिग्घी सी बंध गई , फिर भी इतना तो समझ में आ ही रहा था कि नाम बताने में क्या जोखिम है . 
           दंगाई उसे जानना चाहते थे और ठीक उसी तरह वह भी उन्हें .  पहचान में नहीं आ रहे हैं कि हिन्दू हैं या मुसलमान ! 
           " अबे सेल नाम बता अपना .... वरना मरेगा ...." तलवार और आँखें दिखाते हुए एक बोला .
           " मार दो साले को ....... क्या फर्क पड़ता है ...." दुसरे ने कहा.
            " ऐसे नहीं चलेगा ..... इसकी पेंट खोलो ...... उतार बे ......... अपनी पेंट उतार ......... दिखा साले अपना आई कार्ड ."
          " अबे यार इतना टाइम नहीं है हमारे पास . .... मार दो साले को .... " एक ने तलवार उठाई .
          " एक सेकण्ड .... एक सेकण्ड . देख लो पहले .... कौन है ... पकड़ो साले को ... और उतारो इसकी पेंट . "
          मौत उसके बिलकुल सामने थी . उसे लगा कि वह अब कुछ ही क्षणों का मेहमान है . उसे बेहोशी छाने  लगी ..... दो लोगों ने उसे सड़क पर पटक दिया , बाकि ने उसकी पेंट खींच ली ..... देखा !..... दोबारा देखा ! ............" अरे ! ... ये तो अपना है ! .... अपना भाई ! .... भाई है यार अपना .! ...."
           उसे खड़ा कर हौसला देने के लिए सबने पीठ थपथपाई . एक ने गले लगाया , बोला -" जा ..... निकल जा जल्दी से ..... घर में तेरे बीवी - बच्चे घबराए हुए रह देख रहे होंगे . "
अपने भाई !

3 टिप्‍पणियां:

  1. Mahoday laghu katha achchi lagi.Bharat vibhajan ka sach he ye.(kisi kahani ka ansh he ye)

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    1. नहीं , यह स्वतंत्र लघुकथा है ।
      आपको पसंद आई , धन्यवाद ।

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  2. sir aisi asali ghatna bhi ho chuki hai par usme anjane me "apne bhai" ko maut ke ghat utar diya gaya tha..

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