दंगे की खबर फैलते ही उसने दुकान बंद की और स्कूटर घर की ओर दौड़ा दिया . अचानक एक मोड़ पर छः-सात लोगों के झुण्ड ने उसे रोका ," क्यों बे , कौन है तू ? .... हिन्दू या मुस्लमान ? ..... नाम बता अपना ....."
दंगाई उसे जानना चाहते थे और ठीक उसी तरह वह भी उन्हें . पहचान में नहीं आ रहे हैं कि हिन्दू हैं या मुसलमान !
" अबे सेल नाम बता अपना .... वरना मरेगा ...." तलवार और आँखें दिखाते हुए एक बोला .
" मार दो साले को ....... क्या फर्क पड़ता है ...." दुसरे ने कहा.
" ऐसे नहीं चलेगा ..... इसकी पेंट खोलो ...... उतार बे ......... अपनी पेंट उतार ......... दिखा साले अपना आई कार्ड ."
" अबे यार इतना टाइम नहीं है हमारे पास . .... मार दो साले को .... " एक ने तलवार उठाई .
" एक सेकण्ड .... एक सेकण्ड . देख लो पहले .... कौन है ... पकड़ो साले को ... और उतारो इसकी पेंट . "
मौत उसके बिलकुल सामने थी . उसे लगा कि वह अब कुछ ही क्षणों का मेहमान है . उसे बेहोशी छाने लगी ..... दो लोगों ने उसे सड़क पर पटक दिया , बाकि ने उसकी पेंट खींच ली ..... देखा !..... दोबारा देखा ! ............" अरे ! ... ये तो अपना है ! .... अपना भाई ! .... भाई है यार अपना .! ...."
उसे खड़ा कर हौसला देने के लिए सबने पीठ थपथपाई . एक ने गले लगाया , बोला -" जा ..... निकल जा जल्दी से ..... घर में तेरे बीवी - बच्चे घबराए हुए रह देख रहे होंगे . "
अपने भाई !
Mahoday laghu katha achchi lagi.Bharat vibhajan ka sach he ye.(kisi kahani ka ansh he ye)
जवाब देंहटाएंनहीं , यह स्वतंत्र लघुकथा है ।
हटाएंआपको पसंद आई , धन्यवाद ।
sir aisi asali ghatna bhi ho chuki hai par usme anjane me "apne bhai" ko maut ke ghat utar diya gaya tha..
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