बुधवार, 27 जुलाई 2011

* रिफिल ....


                कचरे के ढ़ेर में दूसरी रिफिल मिल गई तो उससे रुका नहीं गया , वह फूट पड़ी । बोली - ‘‘ क्या बताऊँ  बहन ! उंचे खानदान की हूं , कीमती पेन में घर था मेरा  , जब तक रही कागज पर मोती उतारे । रखने वाले ने हमेशा  सीने से लगा के रखा , कुछ खास मौकों पर तो मेरी पूजा भी की , देवस्थान पर भी सजाया । कितनी ही बार मेरे माध्यम से खुशियों  की इबारत लिखी गई ...... मेरी पूरी इंक उनकी मर्जी पर खर्च हो गई तो आज ...... उन्होंने ऐसे निकाल कर फेंक दिया......  जैसे मैं एक बोझ हूं !!  एक बार भी नहीं सोचा !!! ’’
         ‘‘ दुःख मत कर बहन । ’’ दूसरी रिफिल ने कहा । ‘‘हमारा क्या है ....  हम तो हैं ही रिफिल । ...... अनुपयोगिता के कारण तो वृद्धाश्रम भरे पड़े हैं । ’’

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