शनिवार, 23 जुलाई 2011

- कुत्ते !

             मिडिया वाले ख़ुफ़िया  कैमरों  से रिश्वत लेने वालों को बेनकाब करने लगे . लेकिन मात्र इतनी सी बात पर कोई कल्याणकारी परम्परा बंद नहीं की जा सकती थी . 

            लल्लन  प्रसाद जब भी कोई बड़ा हाथ मारते जगदीश्वर को भेंट अवश्य चढाते और पार्टी भी करते . जगदीश्वर को कोई दिक्कत नहीं थी , लेकिन एक दिन बातों बातों में यूँ ही कहा -- " लल्लन बाकी सब तो ठीक है , लेकिन ये मिडिया वाले आजकल बड़े तेज चल रहे हैं . तुम्हारे साथ कहीं मुझे भी बदनाम न कर दें . "

               " आप चिंता मत कीजिये प्रभु  . हम लल्लन हैं , कोई लल्लू - वल्लू  नहीं . रिश्वत हम नहीं लेते , हमारा कुत्ता लेता है और फ़ौरन हमारी देवी को दे आता है . " लल्लन ने धीरे से बताया .

                " लेकिन मिडिया वाले तुमसे कम नहीं हैं . वे कुत्ते को पैसा लेते दिखा सकते हैं ! " जगदीश्वर ने शंका की .
                " तो दिखाएँ न . देश में कोई भी व्यवस्था या कानून ऐसा नहीं है जो कुत्तों को अपना काम  करने से रोक सके ..... आप तो भोग लगाइए प्रभु , ..... आपका कम सिर्फ भोग लगाना है ." 

                  लाचार जगदीश्वर ने मुस्करा कर अपने को प्रसंग से हटा लिया .


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