सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

अभिषेक !


 


 

" अरे मैडम आप खराब आम क्यों ले रहे हैं ! इसमें तो सड़े हैं सारे ! "

" कोई बात नहीं, चलेगा हमको। ... भाव बताओ तुम। "

" अब भाव क्या बताना इन आमों का!! आप 10 रुपए किलो दे दीजिए। "

" 5 रुपए किलो दो। ....  अभिषेक करना है। तुमको भी पुण्य लगेगा। "

'" तो फिर भाव की क्या बात है !! जो मर्जी हो दे दीजिए। "

" सब तौल दो। ... ठीक से देना, हम हमेशा आएँगे।"

"आपकी ही दुकान है मैडम।"

"अभी हमें बहुत से देवताओं का आमरस से अभिषेक करना है।"

"आप तो मुफ्त ही ले जाइये।.... और यह मेरी तरफ से चढ़ा दीजिए।"

" अरे!!.....  100 का नोट है! सोच लो।"

"सोचना  क्या है.... आप तो चढ़ा देना। भगवान खुश हों न हों पुजारी खुश हो जाएगा।"


------×------

बुधवार, 6 अगस्त 2025

भक्तासुर


 


          रात के तीसरे पहर में जगदीश्वर चुपके से दौड़े चले जा रहे थे कि एक मिडिया मेन की नज़र पड़ गयी। बोला" कहाँ भागे जा रहे हो जगदीश्वर?

        "महिना भर से मुझ पर पानी ढोल रहे हैं! न दिन-दिन देख रहे न रात! ... अब बर्दाश्त नहीं होता है ।" वे बोले ।

     "तो मना कर देते ना ।" पत्रकार बोला ।

     "सरकार फूल बरसा रही है, पुलिस पैर दबा रही है तो मना करने से मानते क्या?"

     "लेकिन अब तो महिना ख़त्म हुआ ।"

       "तो दूध दही वालों ने मैदान पकड़ लिया । कल भक्तों ने इक्कीस किलो आमरस से नहला दिया! दूसरे भांग ठंडाई कूड़ गए, कुछ लोग शहद चुपड़ जाते हैं! ये कोई तरीक़ा है प्रसन्न करने का!"

        "भक्त हैं आपके । आनंद लीजिये और उनका कल्याण कीजिये ।"

        "भक्त नहीं, भक्तासुर हैं । जाने दो मुझे । भरपाया मैं तो ।" जगदीश्वर दुखी थे ।

——

 

 




रविवार, 27 जुलाई 2025

शामिल बाजा


 


"आत्मा का पुर्जन्म अभी नहीं हुआ है। वह अभी भी एक पेड़ पर लटक रही है वर्ष भर से ।" पंडित जी ने पोथी पन्ने पलटते हुए कहा।

"लेकिन मृत्यु के बाद के सारे कराज तो आपने करवा दिए थे!!" प्यारेलाल बोले। 

"इसलिए तो भटक नहीं रही है। पेड़ पर लटकी है आराम से।" 

"कुछ चूक रह गई होगी। जवान मौत का विधान जटिल होता है।" घर की बुजुर्ग महिला ने पंडित का समर्थन किया। 

"आप ठीक कह रही हैं माता जी। "

"अब क्या करें पंडित जी?" प्यारेलाल चिंतित हुए। 

"गाय और बछड़े का दान लगता है ऐसे में ..."

प्यारेलाल गाय और बछड़े के दाम पर विचार करने लगे। 

"आत्मा कहीं भी अटकी हो तो गाय से वैतरणी पार करवा देने का विधान है। आगे जैसी आपकी इच्छा।"

" जो भी विधान हो उसे पूरा तो करवाना ही पड़ेगा पंडित जी।" बुजुर्ग महिला ने कहा। 

" और कोई खर्चा तो नहीं है? " 

" गोदान विधि पूर्वक होगा, ग्यारह या इक्कीस ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, आसन, ताम्रपात्र और मुद्रा आदि देने के साथ गोदान करने का विधान है। गाय में ईश्वर का वास है सो दान के पहले उसे छप्पन भोग खिलाना होगा। यही भोज ब्राह्मण देवता की ग्रहण करेंगे।" विधान सुन कर प्यारेलाल और चिंतित हो गए। 

"उनको लटकते हुए छोड़ तो नहीं सकते ना। " अंदर से एक महिला स्वर सुनाई दिया। 

" गाय को अच्छा चारा खिला दे तो नहीं चलेगा? " प्यारेलाल ने छप्पन भोग से बचने का प्रयास किया। 

" चारा गाय खा लेगी ब्राह्मण कैसे खाएँगे !!... एक थाली में थोड़ा-थोड़ा रखकर निमित्त रूप में खिलाया जाएगा। गाय को भरपेट खिलाने की आवश्यकता नहीं है।"

" किस दिन यह सब होना है पंडित जी? " बुजुर्ग महिला ने पूछा।

" जितना शीघ्र हो सके कर ले पंद्रह दिन बाद ग्यारस है,उस दिन कर लीजिए।"

 प्यारेलाल हां और ना के बीच अभी भी झूल रहे हैं। 

-------×-------



बुधवार, 9 जुलाई 2025

बकरा कटेगा और बंटेगा


 



 *तुम कौन हो बकरा जी ?

 - बकरा हूँ जी।

 *कौन बिरादरी हो कौन जात हो तुम? धरम क्या है? 

 -कोई धरम जात नहीं मालिक, मैं सिर्फ बकरा हूं, आप सेक्युलर कह लीजिये। 

 *लेकिन तुम्हारी दाढ़ी!! 

 -दाढ़ी तो कुदरत ने दी है।

 *तुम्हें मालूम है तुम कटोगे तो बंटोगे । 

 -बंटने का तो मालूम नहीं साहब लेकिन कटेंगे जरूर। कोई बकरा अपनी मौत नहीं मरा आजतक। मौका मिला तो हमने पालपोस कर गाँधी दिया, अहिंसा का पुजारी। लोगों ने धन्यवाद नहीं दिया, काट दिया। 

 *गांधीवादी हो इसलिए कटते हो। कटो मत। 

 -कटना हमारे हाथ में कहाँ है साहब। 

 *अब वक़्त कि पुकार है, हम कटने वालों को एक करना चाहते हैं।

 -तो मालिक हमें बराबरी का दर्जा दे सकते हो? देना चाहते हो?

* बराबरी को बीच में मत लाओ। बराबरी अलग चीज है और कुटाई कटाई अलग चीज है। अगर सबको बराबर कर दिया तो हम क्या हुए!  ऊँच नीच का का मामला तो सिस्टम में है । सिस्टम के समर्थक तो तुम्हारे गाँधीजी भी थे। 

 - अगर बकरे एक होने को राजी नहीं हुए तो? 

* तो उन्हें हम ही काट देंगे।

------------------




गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

भाग्य की रेखाएँ




सिंदूर पुते जगदीश्वर पेड़ के नीचे बैठे खुली हवा का आनंद ले रहे थे कि एक युवक पीड़ा की अवस्था में आया, - “प्रभु इस हाथ को जोड़ दो, जोड़ दो प्रभु ।“
जगदीश्वर चौंके , - “ये कैसे हुआ ! ?”
“भीड़ ने किसी गलत फहमी के कारण हिंसा की और ये हाथ कट गया । जोड़ दो जगदीश्वर ।“  युवक ने कटा हाथ आगे कर आग्रह किया ।
“ये तो मेरे बस की बात नहीं है युवक । तुम्हें फौरन किसी डाक्टर के पास जाना चाहिए ।“ जगदीश्वर ने सलाह दी ।
युवक नहीं माना, - “ये कैसे हो सकता है !! आपने तो हाथी का सिर जोड़ दिया था अपने पुत्र पर !”
“वो तो सिर्फ कथा है, तुम डाक्टर के पास जाओ । “
“ठीक है , डाक्टर के पास जाता हूँ । “ अचानक वह ठिठका, बोला – “कटे हाथ में भाग्य की रेखाएँ कितनी देर तक जिंदा रहती हैं ?”

बुधवार, 11 नवंबर 2015

विमान !!

                       
                     लाला धरमदास घबराए से मंदिर में दौडे़ आए, जगदीश्वर की ओर हाथ उठा कर बोले- ‘‘ ये क्या जगदीश्वर !! ..... मैंने हमेशा  आपकी सेवा की, कभी आपसे बड़ी बड़ी चीजें नहीं चाही। जब भी मांगा तो बस इतना कि अंत समय आ गया है, छोटा बड़ा एक विमान भेज देना और बुलवा लेना। ..... बस इतना सा  ही !!.......  लेकिन ये क्या मजाक है !! ’’
                     ‘‘ हुआ क्या ?! बड़े परेशान लग रहे हो लाला!!’’ जगदीश्वर ने पूछा।
                    ‘‘ जांच में पता चला है कि मुझे कैन्सर है !! मैंने विमान की कामना की थी और आपने ये क्या दे दिया ?! ...... जानलेवा बीमारी !!’’
                    ‘‘ विमान तो यही है लाला .... तुम्हारी समझ का फेर है बस ।’’ जगदीश्वर मुस्कराए।
                                                                          ----------

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

जगदीश्वर का भाग्य !!

                 
     जगदीश्वर के सामने दो  बूढ़े रोज शाम दर्शन  करने आते हैं।दर्शन  तो ठीक है, शिकायतों का अंबार लगाते हैं। जगदीश्वर  को दोषते हैं, कभी किस्मत को कोसते हैं। हमेशा  अपने दुःख-दर्द का रोना।
                       बात उनदिनों की है जब उत्तराखण्ड का प्रलय  हो चुका था। हजारों लोग फंसे, सैकड़ों लापता हुए। कष्ट इतने कि सुनने वालों के प्राण लप्प-धप्प करने लगें। टीवी पर खबरें और दृष्य देख कर तो जान ही सूख गई। 
                    शाम को दोनों आए। बोले- ‘‘ हे जगदीश्वर  तेरा लाख लाख शुक्र  है, हमें वो सब नहीं भोगना पड़ा। तुम्हारे कारण हम यहां सुरक्षित और सुखी हैं। हम सौभाग्यशाली हैं। हम अपनों के साथ हैं, परिवार में हैं। सब कुशल है, कृपा है तुम्हारी। ऐसा ही बनाए रखना प्रभु। ’’
                      उनके जाने के बाद जगदीश्वर देवी से बोले - ‘‘ मैंने तो कुछ भी नहीं किया !! फिर भी लोग मेरे कारण अपने को दुःखी और कुछ अपने को सुखी महसूस कर रहे हैं !!
                   देवी क्या कहतीं, बोलीं-‘‘ कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए ये अफवाह फैला रखी है कि आपकी की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है।’’
                     ‘‘ किन्तु ये अफवाह है, षड़यंत्र है। ..... तुम तो जानती हो देवी !’’
                    ‘‘ भाग्य के लिखे का आप स्वयं भी क्या कर सकते हो जगदीश्वर  ।’’
                                                                                ----

बुधवार, 27 मई 2015

घर किसका ?


जब घर खरीदने के इच्छुक यहां-वहां, आगे-पीछे सब देख कर कीमत कूत रहे थे तो मन विचलित होने लगा, बेचें या नहीं बेचें। शाम तक मन असमंजस में रहा तो जगदीश्वर  के द्वार पर पहुंचे। कहा कि घर बेचना है लेकिन मन में अजीब सी उहापोह मची हुई है।
‘‘ घर ! किसका ?’’ जगदीश्वर ने पूछा ।
‘‘ मेरा घर। बेचना है।’’
‘‘ तुम्हारा घर !! तुम्हारा घर कहां ?’’
‘‘ मेरा घर प्रभु, जिसमें मैं रहता हूं।’’
‘‘ उसमें तो और भी कई प्राणी  रहते हैं। ..... कुछ पंछी, चीटियां, मकड़ी, छिपकली, चूहे, छछूंदर .....’’
‘‘ परिहास कर रहे हो जगदीश्वर।’’
‘‘ परिहास नहीं कर रहा। वो घर दूधवाले का भी है, सब्जी वाले, अखबार वाले का भी। रद्दीवाला, स्तरी करने वाला, सफाई करने वाला तमाम हैं जिनका वो ‘घर’ है। कामवाली बाई से पूछो, वो साफ कहेगी कि ‘मेरा घर है’। ’’
‘‘ सो तो ठीक है, लेकिन ....... ’’
‘‘ और तुम्हारे पुरखे भी तो रहते हैं उसमें। क्या उनका घर नहीं है ?’’
‘‘ आप मुझे भ्रमित कर रहे हैं जगदीश्वर ।’’
‘‘ तुमने पूछा इसलिए बता रहा हूं। ...... और सुनो, वो घर मेरा भी है। रोज अगरबत्ती लगा कर किससे प्रार्थना करते हो ?’’
‘‘ फिर .... !?’’
‘‘ तुम अपना घर बेच सकते हो, ये सामूहिक संपत्ती है। जाओ इसकी रक्षा करो। ’’ कह कर जगदीश्वर चुप हो गए।
                                                                      ----


शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

सत्यान्वेषण .......

           
    जगदीश्वर  देवी के साथ भ्रमण पर थे। तालाब किनारे एक धीर-गंभीर, सौम्य युवक पेड़ के नीचे बैठा जल में उठ रही तरंगों को देख रहा था। देवी की दृष्टि उस पर अटक गई, बोलीं-- ‘‘स्वामी, इस युवक को देखो ..... चिंतक सा लग रहा है ! इस आयु वाले आजकल माॅल में घूमते हैं, हुक्काबार में बैठते हैं, मदिरालय में अपना भविष्य और पिता का धन बरबाद करते हैं, टीवी-इंटरनेट से चिपके बैठे अपना समय नष्ट करते हैं। किन्तु जरा देखो नाथ ये यहां बैठा कुछ सोच-विचार कर रहा है !! इसे आपका आशीर्वाद मिलना चाहिए, .... प्रभु इसे समर्थ बनाइए, यह जो भी इच्छा करे, तथास्तु कहिए। ’’
                      ‘‘ रहने दो देवी, इसे मुझसे कुछ चाहिए होगा तो मंदिर में आ कर मांग लेगा। ’’  जगदीश्वर ने आनाकानी की।
                  ‘‘ ये जरूर आया होगा, किन्तु भीड़ के कारण आपने संज्ञान नहीं लिया होगा। चलिए ना , अभी आप फुरसत में भी हैं।’’ देवी ने हमेशा  की तरह जिद की।
                 विवश जगदीश्वर प्रकट हुए। मांगने को कहा तो युवक बोला -‘‘ मुझे अपूर्व ज्ञान दीजिए प्रभु, ऐसा ज्ञान जिससे मैं सत्यान्वेषण कर सकूं।’’
                ‘‘ तुम समृद्धि मांगो युवक, सुख-सुविधाएं मांगो, सांसारिक सफलता मांगो, आमोद-प्रमोद और आनंद मांगो .... पर यह मत मांगो ...। ’’ जगदीश्वर ने युवक के सामने विकल्प रखे।
               ‘‘ नहीं जगदीश्वर, मुझे ज्ञान-शक्ति  ही चाहिए। ’’ युवक नहीं माना।
              देवी ने जगदीश्वर से फुसफुसा कर कहा -‘‘ दे दो ना। ’’
              जगदीश्वर बोले - ‘‘जोखिम मत उठाओ देवी, .... मैं अपने प्रतिकूल आशीष  कैसे दे सकता हूं ! ’’


                                                                             ---

सोमवार, 18 अगस्त 2014

उल्लू

                         
         रोज अंधेरा होते ही एक उल्लू  मंदिर के गुंबद पर बैठ जाता। परेशान  लोग अपशगुन मान कर उसे उड़ाते लेकिन वह हठी, उड़ जाता पर कुछ देर बाद वापस लौट आता। एक बार देर रात उसे मौका मिल गया। जगदीश्वर  खुली हवा में टहल रहे थे, वह उनके सामने आया, --‘‘ मेरी समस्या का समाधान कीजिए जगदीश्वर।’’
‘‘ पूछो लक्ष्मीवाहक, क्या बात है ?’’
‘‘ जगदीश्वर, मेरे पुरखे आस्ट्रेलिया  के थे इसलिए वे आस्ट्रेलियन  कहलाए। मेरे कुछ बंधु जर्मनी में हैं वे जर्मन कहलाते हैं। अमेरिका में रहने वाले मेरे भाई अमेरिकन हैं। तो में हिन्दुस्तान में रहने वाला हिन्दू क्यों नहीं हूं !?’’
जगदीश्वर मुस्कराए, बोले -‘‘ तुम हिन्दुस्तान में हो इसलिए बेशक हिन्दुस्तानी हो। लेकिन हिन्दू नहीं उल्लू हो। .....  हिन्दुस्तानी उल्लू ।’’ 
                                                                            -------

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

मदद !

     
              जन्मदिन पर भियाजी दलबल के साथ मंदिर पहुंचे, पूजन किया और हाथ जोड़ कर जगदीश्वर  से कहा कि - ‘‘ मैं नगर में एक अंधशाला खोलना चाहता हूं । आप मदद कीजिए । ’’
                     जगदीश्वर बोले - ‘‘ नगर में कोई अंधा तो है नहीं !! फिर क्यों .... ?! ’’
                    ‘‘ इसीलिए तो आपकी मदद चाहिए प्रभु । .... जनमदिन मनाने के लिए एक अंधशाला तो हर बड़े नेता के लिए जरूरी है । 
  

                                 -------

बुधवार, 11 जून 2014

तुम्हारे लिए !

             
    कवि लंबे समय से तनाव और दुःख में चल रहा था। दिन-ब-दिन उसकी निराशा  बढ़ती जा रही थी। आखिर एक दिन उसे लगा कि ये संसार रहने काबिल नहीं है। शांति  और मुक्ति का एक मात्र मार्ग मृत्यु ही है। उसने आत्महत्या का निश्चय किया। बाजार से रस्सी ले कर लौट रहा था कि मंदिर दिख पड़ा। मन हुआ कि चलो आखरी बार जगदीश्वर  से रू-ब-रू हो लिया जाए।
            जगदीश्वर घूप-अगरबत्ती के घुंए में बैठे थे। नारियल के पानी से मिल कर बासी फूल-पत्तों से दुर्गन्ध आ रही थी। प्रसाद के मीठे से आसपास चीठा हो रहा था। धुंआए गर्भगृह में बल्ब की कुंद  रौशनी घुटन पैदा रही थी। कैसे जी रहे हैं जगदीश्वर !! कवि को लगा कि किसी तरह इन्हें भी मुक्ति का मार्ग पकड़ना चाहिए।
‘‘ कैसे आना हुआ कविराज ?’’ ध्यान गया तो जगदीश्वर ने पूछा।
‘‘ तंग आ गया हूं तुम्हारे इस संसार से। अब सहन नहीं होता मुझसे। मैंने तय कर लिया है कि अब आत्महत्या करूंगा। ’’ कवि ने नई खरीदी रस्सी दिखाते हुए कहा।
‘‘ ठीक है, कर लो। ..... मरने के बाद मैं तुम्हें अपने पास बुला लूंगा। हम दोनों यहाँ साथ ही रहेंगे। .... जाओ, जल्दी मरो । ’’ जगदीश्वर ने प्रसन्न हो कर आज्ञा दे दी।
कवि बाहर खुली हवा में निकला ...... और मयखाने में जा कर बैठ गया। जाम आया तो थोड़ी सी शराब छलका कर बोला - ‘‘ जगदीश्वर ...... तुम्हारे लिए। ’’

                                                            ---

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

किस्मत का दरवाजा


                   जगदीश्वर सो चुके थे . आधी रात को एक नौजवान नशे में धुत्त आया और घंटियाँ बजने लगा . जगदीश्वर को उठाना पड़ा.
                 युवक नाराज था, बोला --" मैं सात भाइयों में छोटा हूँ . ना मुझे ठीक से खाना मिला, ना ही पढाई -लिखाई हुई, कोई हुनर भी सीख नहीं पाया. मेहनत बनती नहीं, कोई पूछता नहीं . ना शक्ल सूरत है ना इज्जत. तू सबके किस्मत के दरवाजे खोलता है . मैंने क्या बिगाड़ा था तेरा !! एक दरवाजा मेरे लिए नहीं खोल सकता था !? "
                  " गुस्सा मत करो युवक .... तुम्हारे लिए एक दरवाजा खोल रखा है मैंने ."
                  " कौन सा !!?" नौजवान चौंक पड़ा.
                  " राजनीति का, .... जाओ किसी नेता के पीछे हो लो . " कह कर जगदीश्वर वापस सो गए .


                                                                 -----

हलो जगदीश्वर !!

               

             
 रेगिस्तान पार करते आज तीसरी सुबह हो रही थी . लगा कि वह रास्ता भटक गया है, पिछले छत्तीस घंटों में उसे कोई दिखा नहीं, न इंसान , न पशु -पक्षी.... और तो और सांप-बिच्छु भी नहीं. उसे रह रह कर घबराहट सी होने लगी .
                 अचानक एक जगह काँटों वाली नागफनी का समूह दिख पड़ा. पास जा कर देखा  तो काँटों के बीच एक फूल खिल रहा था . वह फूल को देखता रहा, उसे बहुत राहत महसूस हुई   .... अचानक मुस्कराते हुए बोला -- " हलो जगदीश्वर !!"

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

रोज नई आरती

       
       
हार कर हरद्वारी प्रसाद ने मंदिर आना बंद कर दिया. महीनों गुजर गए, एक दिन रास्ते में टकराए तो जगदीश्वर ने पूछा - "क्यों हरद्वारी ! बहुत समय हुआ तुम मंदिर नहीं आये ?"
              "क्या करूँ आ कर !, आप  मेरी तरफ ध्यान ही कहाँ देते हो ! " हरद्वारी ने शिकायत की .
              " ध्यान तो तभी दे पाउँगा जब तुम आते रहोगे ."
              "आता तो रहा था, आरती भी रोज करता था . पर लगता है आपको आरती की आदत पड़ गई है, आप आरती व्यसनी हो गए हो ."
              " आरती व्यसनी मैं नहीं आरती करने वाले होते हैं. रोज रोज एक बेसुरी, फूहड़ और कर्कश आरती सुनना मुझे भी अच्छा नहीं लगता है ." जगदीश्वर ने आपनी पीड़ा बताई .
              " अब रोज नई आरती कहाँ से आयेगी आपके लिए !!?"
              " गरज से बड़ा गुरु कोई नहीं है. ............अपने बॉस के सामने
रोज नई आरती कैसे गा लेते हो !?"

                                                        -------

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

रचनाकारों के बीच रिश्तेदारी !

                 
जगदीश्वर भोर में टहलते हुए घाट की ओर निकल आये . देखा एक व्यक्ति पूर्व की ओर मुख किये पाषण-प्रतिमा बना बैठा है !! पूछा - "कौन हो तुम ?"
" लोग मुझे कवि जानते हैं ." उसने कहा.
" अच्छा !! .... मैं जगदीश्वर हूँ ... जगदीश्वर , स्रष्टि को रचने वाला ."
" हूँ ..... लोग ऐसा ही समझते हैं ."
" लोग समझते है !!! तुम नहीं समझते !? ... सब मुझे परमपिता मानते है ... तुम ?"
जगदीश्वर को बुरा लगा .
" लोगों का मानना ही बड़ी बात है ."  कवि बोला .
" तुम भी मान सकते हो .....मुझे खुशी होगी पुत्र ."
" रचनाकारों के बीच रिश्तेदारी महत्वपूर्ण नहीं होती है जगदीश्वर . "
जगदीश्वर कुछ कहना चाहते थे, लेकिन  बोले नहीं .
                                                                 ----------------------


बुधवार, 24 जुलाई 2013

तुम यहां !!!


              प्राकृतिक आपदा से हजारों तीर्थयात्री मारे गए, मंदिर नष्ट हो गया, बस्तियां उजड़ गई, पूरा देवधाम वीरान हो गया ।
           मातादीन भी सपरिवार देव-दर्शन और पुण्य कमाने के लिए गए थे, किन्तु दुर्भाग्य .... उनका कोई बच नहीं पाया। दुःख का पहाड़ ढ़ोते वे किसी तरह रोते, गिरते-पड़ते घर पहुंचे। भारी मन से दरवाजे का ताला खोला। 
           अंदर देखते ही उनकी चीख निकल गई - ‘‘ जगदीश्वर  तुम !! ...... यहां !! ..... यहीं थे क्या?!’’
----

----

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

घर जलाओगे क्या !!


  एक बार लिखने बैठा, पेन निकला तो दिल निकल आया धप्प से , उछल कूद करने लगा सामने . मुट्ठी भर का .... छोटा सा .. धधकता हुआ .... साबुत लाल-अंगार  दिल .
मैनें उससे कहा - कबख्त ! .... यहीं हो ! ... हुए नहीं किसी के अब  तक !?
वह  बोला - व्यंग्यकार का हूँ ..... जो हाथ लगाता है .....उसे फफोले पड़ जाते हैं .....
मुझे अच्छा तो नहीं लगा ..... फिर भी उससे कहा - चल अपन खेलते हैं ...
अब ये प्रतिदिन  का किस्सा हो गया ..... अपने दिल के साथ खेलना ..... हर दिन दिवाली.
पत्नी रोज ही कहती है - बस भी करो ...... घर जलाओगे क्या !!!!!

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

* बहुमुखी


              वे जिससे मिलते उसी के हो जाते हैं । कांग्रेसियों के आगे वे गांधी से गांधी  तक बिछ पड़ते हैं । भाजपाइयों के सामने जाते हैं तो लगता कि सजिल्द वेद-पुराण हो गए और न केवल मंदिर वहीं बनाएंगे बल्कि पहली पूजा भी वही करेंगे । कामरेडों के समक्ष ‘मार्क्स -चालीसा’ का इतना जाप करते कि वे बिना बात ‘जो हमसे टकराएगा , मिट्टी में मिल जाएगा’ चीखने लगते । अमीर के सामने स्वर्णाभूषण से चमकते, तो गरीब को देख दयावंत हो उठते । वे गीली मिट्टी  की तरह हैं , जो उन्हें छू देता उसी के हाथ के निशान  उन पर दिखने लगते । न उनका रंग है न ही कोई आकार । वे जल की तरह जिस बरतन में गिरते वैसे ही बन जाते हैं ।  सामने पड़ जाए तो पत्नी को प्रेम करते हैं लेकिन प्रेमिका की याद आते ही उसके हो जाते हैं । प्रेमिका अब साठ पार कर चुकी है, किन्तु छुपके-चुपके अब भी दोनों में बातें होतीं है । उसके बच्चों और नाती-पोतों की चर्चा करते हैं तो समझते हैं कि उन्हीं के हैं । इधर उनके बच्चे और नाती-पोते तो उनके हैं ही । हरेक के लिये उनके पास एक मुख है । वे बहुमुखी हैं । उनका कोई एक साफ चेहरा आज तक नहीं बन पाया है ।  जैसा कि जगदीश्वर, वो सबका है , इसीलिये किसीका नहीं है ।
                                                                     ---------

सोमवार, 10 सितंबर 2012

विवशता !


                     मंदिर में देर रात कुछ लोग मुंह ढंके जगदीश्वर  के सामने आए । पूजन किया, भेंट चढ़ाई और बोले - ‘‘ हम डाकू हैं । इस समय गांव में डाका डालने जा रहे हैं । हे जगदीश्वर ......  आप कृपा कर हमें आशीर्वाद  दीजिए कि तगड़ा माल लूटने को मिले । ’’
                   जगदीश्वर  ने कहा - ‘‘ तथास्तु । .... सफल भव । ’’
                   डाकू चले गए । पास बैठी देवी कुछ समझ नहीं पाईं । वे घूरने लगीं .
                   जगदीश्वर  बोले - ‘‘  घूरो मत , ..... सदा सच बोलने वालों का साथ देना और सहायता करना मेरी विवशता है देवी । ’’

                                                                              ----

रविवार, 2 सितंबर 2012

इकतालीसवां चोर !



                       ‘‘ जगदीश्वर  !! क्या तुम्हें कुछ दिखता नहीं है !! ये तुम्हारी आंखों के सामने क्या चल रहा है ! ये .... ये लोग बेईमान हैं , झूठे हैं , लुच्चे हैं,  किसी का लिहाज नहीं है इनको ! ..... रात-दिन अपना घर भरने में लगे हैं ! .... सात-सात पीढ़ियां खाएं  इतना जमा कर लिया है इन्होंने ! ... इन्हें शरम भी नहीं आती !! ... इन्हें यह डर भी नहीं है कि कल तुम्हें मुंह  दिखाना पड़ेगा ! ... लेकिन तुम तो यहां मस्त पड़े हो ! तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है या नहीं ? ! .... मैं तुम्हारा बहिष्कार करूंगा ... तुम्हारे दर्शन  को नहीं आउंगा .... तुम्हारी पूजा भी नहीं करूंगा ... ’’ । वह नाराज आदमी पैर पटकता हुआ चला गया ।
              भौंचक जगदीश्वर  ने परदे के पीछे खड़े भक्त से पूछा - ‘‘ इसे जानते हो ? .... ये कौन था ? ’’
              ‘‘ जानता हूं जगदीश्वर  , ... ये इकतालीसवां चोर है । ’’ अलीबाबा ने उत्तर दिया ।
                                                                                   -----

रविवार, 26 अगस्त 2012

जगदीश्वर के एवजी

   पंडित जी से पता चला कि उनके घर में जगदीश्वर अतिथि होने वाले हैं । पत्नी ने कहा - ‘‘ बड़े भाग्य हमारे । लेकिन अतिथि को खिलाएंगे क्या ? ! पहला मौका है कुछ सूझ नहीं पड़ रही है । दूसरों से राय ले लो तो पता चले । ’’
                   पति सोच में पड़ गया कि किससे राय लें ! पत्नी ने फिर हड़काया - ‘‘ जरा बाहर निकलो, जो मिले उससे राय लेना । कोई भी बता देगा । ’’
                  अनमना पति बाहर निकला, बाड़े में गाय बंधी थी । सोचा गायमाता से राय लेना ठीक रहेगा, पूछा - ‘‘ घर में अतिथि आने वाले हैं, उनका सत्कार कैसे करूं ? ’’
                      ‘‘ अच्छी ताजी घास खिलाओ ... हरी हरी । ’’ गाय ने कहा ।
                  पति खुश  हुआ, ..... सामने तोता था पिंजरे में । सोचा एक से भले दो, इससे भी राय ले लें ।
                   तोते ने कहा -  ‘‘ एक अमरूद और दो-तीन हरी मिर्च से उत्तम कुछ नहीं है । ’’
                  पास में ही एक जोड़ा पालतू कबूतर गुटर-गूं कर रहा था, उससे भी पूछा, तो बोला - ‘‘ एक मुट्ठी ज्वार के दाने से अच्छा सत्कार हो सकता है । ’’
                  बाहर की दीवार के पास रहने वाली मादा सुअर अपने बच्चों के साथ पड़ी थी, वह बोली - ‘‘ पीछे गली में छोड़ देना, ........ इससे अच्छा सत्कार संसार में कुछ नहीं है । ’’
                   पति ने लौट कर सबकी राय पत्नी को बताई तो वह भ्रम में पड़ गई । दोनों सलाह कर पंडितजी  के पास गए और  उनकी राय जानी ।
                     वर्षों हो गए, -------  पति-पत्नी प्रतिदिन भोग लगा रहे हैं और जगदीश्वर की एवज में पंडितजी स्वीकार कर रहे हैं ।
                                                                                          -----

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

मदद !

           जन्मदिन पर भियाजी दलबल के साथ मंदिर पहुंचे, पूजन किया और हाथ जोड़ कर जगदीश्वर  से कहा कि - ‘‘ मैं नगर में एक अंधशाला खोलना चाहता हूं । आप मदद कीजिए । ’’
            जगदीश्वर बोले - ‘‘ नगर में कोई अंधा तो है नहीं !! फिर क्यों .... ?! ’’
             ‘‘ इसीलिए तो आपकी मदद चाहिए प्रभु । .... जनमदिन मनाने के लिए एक अंधशाला तो हर बड़े नेता के लिए जरूरी है ।"
                              ---------

मंगलवार, 26 जून 2012

भ्रम और विश्वास

" तुम इतने समझदार हो फिर भी नशा करते हो !! ये तुम्हें शोभा नहीं देता है ! "
" तुम नहीं समझोगे .... नशे में मुझे जगदीश्वर दीखते हैं ."
" क्या मूर्खों सी बात कर रहे हो !! ..... नशे में जगदीश्वर नहीं दीखते है ... भ्रम आवश्य होता है ."
" तुम क्या कहना चाहते हो !? .... जगदीश्वर एक भ्रम हैं ? "
" मैंने कहा  कि नशे में भ्रम होता है . मानो  इस बात को . "
" चलो माना ......  किन्तु भ्रम पर विश्वास करने का कोई और तरीका है तुम्हारे पास ? "
                                                                   -------

बुधवार, 28 मार्च 2012

वर्दी .......


                        सब-इंस्पेक्टर पाण्डे तिलमिलाया सा जगदीश्वर  के पास पहुंचा - ‘‘ देखो जगदीश्वर , वो लाल बाबा हवा में से आपकी मूर्ति निकाल कर लोगों को मूर्ख बना रहा है और ठग रहा है । इसका कुछ कीजिए । ’’
‘‘ लोगों की गलती है । उन्हें लाल बाबा की चालाकी समझना चाहिए । ’’ जगदीश्वर  बोले ।
              ‘‘ आप उसको कुछ दंड दीजिये ना ! ’’
             ‘‘ दोष लोगों का है ..... उसको दंड कैसे दिया जा सकता है ! ’’ जगदीश्वर  ने लाचारी बताई ।
‘‘ मेरे नाम से वसूली करने वाले को तो मैं इतना पीटता हूं कि वो अपना  नाम भूल जाता है और मेरा नाम जपते हुए हल्दी-चूना लगाता है ! ’’ पाण्डे बोला ।
                         ‘‘ तुम्हारे  पास वर्दी  है सब-इंस्पेक्टर पाण्डे । ’’
                                                                        ----

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

* उदार दृष्टिकोण


                  दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का फैसला दिया तो  नैतिकतावदियों ने विरोध किया । सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता विरोधी याचिकाओं की सुनवाई हो रही थी । न्यायमूर्ति के सामने केन्द्र सरकार का पक्ष आया कि समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने में  उसकी सहमति है । भारतीय समाज आईपीसी लागू होने  के पहले से समलैंगिकता के मामले में अंग्रेजों से ज्यादा सहिष्णु था । उन्होंने जोर दे कर कहा कि भारत सरकार को हाई कोर्ट के फैसले में कोई कानूनी खामी नहीं मिली है और वह इसे यथारूप में स्वीकार करती है ।
               लल्लन ने समाचार सुना तो उत्तेजित हो गए - ‘‘ ये कैसी सरकार है जी !! आखिर किधर ले जाना चाहते हैं देश  को !! कहां तो गांधी जी ने ब्रहम्चर्य की शिक्षा  दी थी और कहां ये फूहड़पन !! ’’
‘‘ मजबूरी में सब करना पड़ता है भाई । ’’ विशेषज्ञ बोले .
‘‘ मजबूरी ! ....... ऐसी भी क्या मजबूरी हो सकती है !? ’’
‘‘ जानते नहीं हो क्या कि सरकार छोटे दलों के समर्थन और सहयोग से चल रही है । ...... उदार दृष्टिकोण तो रखना ही पड़ता है । ’’
                                                                   ----

बुधवार, 21 मार्च 2012

श्रेय !!



                 जगदीश्वर  दुःखी बैठे थे । लल्लन ने पूछा तो बोले - ‘‘ दुनिया मैंने बनाई है , लेकिन अब कोई श्रेय देने को तैयार नहीं है ! ’’
               ‘‘ आप भगवान हैं , दुनिया आपने ही बनाई है भला इसमें किसे आशंका  हो सकती है !? ’’ लल्लन चकित और थोड़े क्रोधित हुए ।
         ‘‘ श्रमिक दावा करते हैं कि दुनिया उन्होंने बनाई है । ’’
         ‘‘......  ! .... उनकी बात में दम तो है ...... दुनिया मजदूरों ने ही बनाई है । ’’
               ‘‘ तुम मेरे भक्त हो या श्रमिकों के वकील !? ’’
           ‘‘ लेकिन जगदीश्वर ...... श्रमिक तो आपने ही बनाए हैं ....... आप श्रमिक बनाने का श्रेय ले लो । दुनिया बनाने का अप्रत्यक्ष सहयोग ..... ।  ’’
                ‘‘ ...... । ...... । ....... । ..... नहीं । ..... पता नहीं ..... यह श्रेय है या अपराध ! ’’ जगदीश्वर  दुःखी बने रहे ।
                                                                     ---------

सोमवार, 12 मार्च 2012

भ्रष्टाचार !


                     जगदीश्वर  सो रहे थे , मध्य रात्रि में  दरवाजे पर दस्तक हुई । सोचा कोई दुखियारा होगा, उठ कर दरवाजा खोला तो देखा तमाम अफसर हैं । पता चला कि आयकर विभाग से आए हैं, जांच करेंगे यानी छापा पड़ा है ।
दो घंटे की छानबीन के बाद अफसर बोला - ‘‘ तीनों तहखाने देखने के बाद साफ होता है कि आपके पास आय से अधिक संपत्ती है । ’’

‘‘ भक्तजन चढ़ा जाते हैं । इसमें मैं क्या कर सकता हूं ! ’’ जगदीश्वर  ने आय का प्रश्न साफ  करने का प्रयास किया ।
‘‘ भक्त सौ-पचास रुपए चढ़ाते होंगे ? ’’
‘‘ नहीं , बहुत से भक्त लाखों चढ़ाते हैं .... और कुछ तो उससे भी ज्यादा । ’’
‘‘ यों ही नहीं चढ़ाते होंगे । ....... आप उन पर विशेष  कृपा करते होंगे  तभी वे लाखों चढ़ाते हैं ? ’’
‘‘ सो तो है ना । बिना विशेष  कृपा पाए कोई क्यों चढ़ाएगा ! ’’ जगदीश्वर  ने आत्मविश्वास   के साथ बताया ।
‘‘ ठीक ....... , अब आप यह भी जान लीजिए कि संसार में इसी को भ्रष्टाचार कहते हैं । ’’
अफसर ने चालान के कागज निकालते हुए कहा ।
                                                                 -----

शनिवार, 10 मार्च 2012

* कर्मफल . . . .

               अनन्य भक्त नामदास त्यागी को मौका मिला तो उसने जगदीश्वर से पूछा - " प्रभु मेरे भाग्य में कैसी म्रत्यु है ?"
" जैसी सब की होती है नामदास ." जगदीश्वर मुस्कराते हुए बोले .
" वो तो ठीक है प्रभु , पर इतना तो बताइए की मेरी म्रत्यु कैसे होगी ?" नामदास बच्चों सा हठ करने लगे तो जगदीश्वर को बताना पड़ा की - " तुम्हारी म्रत्यु पानी में डूबने से होगी ".
              तीन - चार साल बाद नामदास अस्पताल में पड़ा जगदीश्वर को पुकार रहा था . पंद्रह दिनों की पुकार के बाद आखिर जगदीश्वर को आना पड़ा .
         " ये क्या जगदीश्वर !!! ... आपने मुझसे झूठ कहा की मेरी म्रत्यु पानी में डूबने से होगी ! ... ये देखो ..... डाक्टर  कहते हैं कि मुंह का केंसर आखरी स्टेज पर है !! अब बचना मुश्किल है . ... आपने झूठ क्यों कहा !?"
       " मैनें झूठ नहीं कहा था नामदास . तुम्हारे भाग्य में म्रत्यु पानी में डूबने से ही लिखी है .... तुम्हारी ये म्रत्यु भाग्य कि नहीं कर्म कि है . मैं केवल भाग्य लिखता हूँ ..... कर्म और कर्मफल के लिए व्यक्ति स्वयं उत्तरदायी होता है . "
                                                                         _______

* स्वर्ग में लाल झंडा !

                 मंदिर में कोई नहीं था , कामरेड ने पहले फूल चढ़ाये , दीपक और अगरबत्ती जलाये , लाल -पीला कपड़ा , कुछ फल और मिठाई अर्पित की , अंत में हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगे .
           जगदीश्वर चौकें ! पूछा -  " कामरेड !! .... तुम यहाँ ! सब कुशल तो है ? "
          " वृद्ध हो चला हूँ जगदीश्वर .  कभी भी जाना पड़ सकता है  . "  कामरेड बोले .
                   " कहो , मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ ? "
                   " मैनें जीवन भर गलतियाँ की ...... , यदि क्षमा कर देते तो ....."
                   " ठीक  है , क्षमा किया . ..... और बोलो क्या चाहते हो ? "
                   " स्वर्ग की इच्छा है , अगर ......"
                   " चलो ठीक है , तुम्हारे लिए स्वर्ग भी ......."
                   " एक बात और थी जगदीश्वर ...."
                   " हाँ हाँ , बोलो ."
                   " स्वर्ग में लाल झंडे के साथ प्रवेश मिल जायेगा न ? "
       जगदीश्वर कुछ नहीं बोले .

गुरुवार, 8 मार्च 2012

* पापियों के साथ रहने की आदत डालो

" कहते हैं जब पृथ्वी पर पाप बढ़ जायेंगे तब आप अवतार लेंगे !  क्या यह सच है जगदीश्वर ?" दास बाबू ने पूछा .
" हाँ , सच है . मैं पृथ्वी पर आ चुका हूँ . तुम्हारे सामने हूँ . " जगदीश्वर बोले .
" तो फिर कुछ करते क्यों नहीं !?"
" क्या करूँ ?!"
" धर्म की रक्षा कीजिये , और क्या ! " दास बाबू ने याद दिलाया .
" धर्म है ही कहाँ जिसकी रक्षा करूँ ?!" जगदीश्वर ने लाचारी बताई .
" तो पाप का नाश कीजिये , पापी  तो हैं , उन्हें मारिये  . "
" कैसे मारूं , ..... रात- दिन करोड़ों पापियों और खूंखार भक्तों  बीच अपने को घिरा पाता हूँ तो खुद मेरी घिग्घी बांध जाती है ."
" फिर मैं क्या करूँ ? "
" तुम भी कुछ नहीं कर सकते हो ......पापियों के साथ ही रहने की आदत डालो भक्त . "

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

स्वर्ग !!!

लल्लू प्रसाद  ने जगदीश्वर से पूछा -  " तनिक ये तो बताइए जगदीश्वर , स्वर्ग होता कैसा है ? "
" स्वर्ग बहुत सुन्दर होता है . " जगदीश्वर बोले .
" वहाँ क्या क्या होता है ? तनिक खुल कर बताइए . "
" सुन्दर अप्सराएँ होतीं हैं , मधुर संगीत होता है , नृत्य - गान होते हैं , देवता लोग सोमरस का मन चाहा सेवन करते हैं , आमोद प्रमोद होता है , नारद जी सूचनाएं लेते - देते रहते हैं , सब लोग आनंद और मद में डूबे रहते हैं .............. "
" अरे तो यों कहिये न कि ...... स्वर्ग भले आदमियों के रहने कि जगह नहीं है . "
______

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

भस्मासुर........

                  " सबसे पहले आप मुंह मीठा कीजिये जगदीश्वर , मेरी नौकरी आज पक्की हो गई है ." रमेश ने मिठाई आगे की .
                  " अरे वाह  !! बधाई . प्रसन्न रहो . तुम्हें आशीर्वाद . "     जगदीश्वर ने मुंह मीठा किया .
                  " रात-दिन मेहनत की ..... तब कंहीं आज यह दिन देखने को मिला है . " रमेश ने बताया .
                  " परिश्रम का फल तो मिलता ही है . अब  खूब मन लगा कर काम करना , आगे और सफलताएँ मिलेंगी ."    जगदीश्वर ने हौसला दिया .
                  " सफलता तो मिल गई . नौकरी पक्की . ..... अब काम - वाम करने की जरुरत नहीं है . "      रमेश बोला .
                  " अरे !! शुभ शुभ बोलो रमेश . कहीं सरकार निकम्मा कह कर निकल दे तो !? "
                  " आप चिंता मत करो  जगदीश्वर , हमारे पास यूनियन है , कोर्ट है , कानून है , वकील है . स्थाई कर्मचारी के पास भस्मासुर की ताकत होती है . एक बार तथास्तु कह देने के बाद सरकार  उससे डरती है . " 

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

लाचारी !!


                   मंदिर के पीछे बलात्कार हुआ । पीड़ित युवती फटे कपड़ों और तार-तार इज्जत के साथ जगदीश्वर  के सामने पहुंची  -- ‘‘ प्रभु !! .... तुम्हें सब पता है क्या हुआ । तुम्हारे मंदिर के पीछे ही हुआ !!! .... न्याय कीजिए प्रभु । ’’
                ‘‘ शांत  हो जाओ । मैं जानता हूं , मुझे सब पता है ......... , कहो , तुम्हें कितना मुआवजा चाहिए ? "      
               ’’जगदीश्वर ने उदारता की तिजोरी पर हाथ रखते हुए पूछा ।
               ‘‘ मुझे मुआवजा नहीं, न्याय चाहिए । आप समर्थ हैं, उस दुष्ट को कड़ी से कड़ी सजा दीजिए जगदीश्वर ।’’
              ‘‘ मुझे क्षमा करो देवी । केवल मुआवजा देना मेरे हाथ में है । .......  ‘वो’ मेरा परम भक्त है । ’’
             ‘‘ आपका भक्त हुआ तो क्या ‘वो’ कुछ भी कर लेगा !!? ’’
             ‘‘ उसकी भक्ति के आतंक के आगे मैं लाचार हूं देवी । मुआवजे के अलावा मेरे और तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है । ’’
               ‘‘ तो  ............... ठीक है , ......... जैसी आपकी इच्छा । ........ आप जगदीश्वर हैं । ’’
                       जगदीश्वर ने पांच हजार रुपए दे कर युवती को बिदा किया ।
                  अभी वह कुछ दूर ही गई थी कि दूसरा भक्त आ गया । बोला - ‘‘ अब तो मुआवजा तय हो गया है , चाहो तो पहले ले लो ।  ’’

                                                                                   ------

बाजार में रिश्ते !!


          लड़की ने एक भद्दा सा इशारा  किया , बोली - ‘‘ चलता है क्या ?’’
‘‘ लड़की ! मैं जगदीश्वर  हूं । ’’ चौंकते  हुए जगदीश्वर  ने बताया ।
‘‘ जगदीश्वर  हो या कि परमेश्वर , मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । माल तो है ना पाकेट में ? ’’
‘‘ मैं तुम्हारे पिता जैसा हूं । ’’
‘‘ मुझे ले जाने वाले ज्यादातर पिता जैसे ही होते हैं ।’’
‘‘ मुझे क्षमा करो देवी । ’’ जगदीश्वर  ने हाथ जोड़ दिए ।
‘‘ बाजार में रिश्ते ले कर मत निकला करो जगदीश्वर   । ’’ लड़की तुनक कर दूसरे आदमी की ओर चल दी ।

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

संयोग !



                  ‘‘ आप से कुछ छुपा तो है नहीं जगदीश्वर , आप मन की हर बात जानते हैं ...... जीतने के बाद मैं पहले अपना घर भरूंगा उसके बाद ही दूसरे काम करूंगा , बस आपकी कृपा रहे । ’’ हार फूल चढ़ाते हुए उम्मीदवार ने हाथ जोड़े ।
                पीछे दूसरा उम्मीदवार भी था , उसने पहले की बात सुन ली ।
               अपनी बारी आने पर वह हाथ जोड़ कर बोला - ‘‘ मैं उसकी तरह झूटा और जल्दबाज नहीं हूं । मैं पहले आपका घर भरूंगा उसके बाद अपना । बस आपकी कृपा रहे । ’’
               दूसरा उम्मीदवार  जीत गया । जगदीश्वर  ने कहा-- "यह संयोग है "।