करमचंद काम पर जाने के लिए निकल रहे थे । देखा कि जूते में मेंढ़क दुबका बैठा है । पता नहीं क्या सूझा , उन्होंने मेंढ़क को तोते के खाली पड़े पिंजरे में डाल कर बंद कर दिया ।
करमचंद की पत्नी सुलक्षणा को यह बात अच्छी नहीं लगी , बोली - ‘‘ ये क्या !! .... मेंढ़क भी कोई इस तरह पालता है !! लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ?! ’’
‘‘ कहने वाले पागल होंगे तुम्हारी तरह । अरे इतना तो मालूम होना चाहिए कि मेंढ़क हमारी भाषा नहीं समझता है, फिर उसे क्यों कुछ कहेंगे ? ’’ करमचंद ने कहा ।
‘‘ मुझे भी मालूम है कि मेंढ़क हमारी भाषा नहीं समझता है । लोग हमें तो कहेंगे।’’ सुलक्षणा बोली ।
‘‘ क्या कहेंगे ?! ’’
‘‘ यही कि तोता पाला जाता है , मेंढ़क पाल लिया !!’’
‘‘ जैसा तोता वैसा मेंढ़क । क्या फर्क है ? ’’
‘‘ तोता राम राम बोलता है । ’’
‘‘ अपने आप बोलता है ? ’’
‘‘ नहीं , उसे सिखाओ तो सीख जाता है और राम राम बोलता है । ’’
‘‘ तो इसे सिखा दो , ये भी बोलेगा राम राम । ’’
‘‘ मेंढ़क भी कहीं राम राम बोल सकता है !! बात करते हो ! ’’
‘‘ तुम पहले से ही मान कर चलोगी तो तुम्हें उसकी राम राम समझ में नहीं आएगी । ’’
‘‘ मैं मूर्ख नहीं हूं । तुम ज्यादा बुद्धिमान हो , तुम्हीं सिखा कर बताओ तो जानूं । ’’
करमचंद सुबह-शाम जब भी समय मिलता मेंढ़क को राम राम सिखाने लगे ।
‘‘ बोल बेटा मेंढ़क राम राम ’’
‘‘ टर्र टर्र - टर्र टर्र ’’
‘‘ बोल राम राम ’’
‘‘ टर्र टर्र ’’
‘‘ कितना भी माथा फोड़ लो , वो मेंढ़क है , टर्र टर्र ही करेगा । ’’ सुलक्षणा बोली ।
‘‘ इतना जानती हो कि मेंढ़क है, पर ये नहीं समझ रही हो कि वो राम राम ही बोल रहा है । ’’
‘‘ अब इतना भी नहीं समझती क्या !!? वो साफ टर्र टर्र ही बोल रहा है ! ’’
‘‘ प्रिये , दरअसल तुम अपने चक्षु और ज्ञानपट बंद किए बैठी हो । तोते के प्रेम में तुम्हें उसकी टें-टें राम राम जैसी लगती है । तुम जरा इस मेंढ़क से प्रेम तो करो .... देखो वो भी तुमसे राम राम ही बोलेगा ।
" मेंढक से प्रेम !! किसी हालत में नहीं . "
" तो फिर तुम्हें मेंढक की राम राम कभी नहीं मिल सकेगी ."